इस वेद में कुल 1875 मन्त्र संग्रहित हैं। उपासना को प्रधानता देने के कारण चारों वेदों में आकार की दृष्टि से लघुतम सामवेद का विशिष्ट महत्व है। श्रीमद्भगवद्गीता स्वविभूतियों का उल्लेख करते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण ने स्वयं को वेदों में सामवेद कहकर इसकी महिमा का मण्डन किया है – "वेदानां सामवेदोऽस्मि।(श्रीमद्भगवद्गीता 10/22)- वेदों में मैं सामवेद हूँ।"