त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षमाणा हृषितासो मरुत्वन्। तिग्मेषव आयुधा संशिशाना उप प्र यन्तु नरो अग्निरूपाः ॥
अथर्ववेद में ब्रह्मास्कन्दः के 14 संदर्भ मिले
त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षमाणा हृषितासो मरुत्वन्। तिग्मेषव आयुधा संशिशाना उप प्र यन्तु नरो अग्निरूपाः ॥
अग्निरिव मन्यो त्विषितः सहस्व सेनानीर्नः सहुरे हूत एधि। हत्वाय शत्रून्वि भजस्व वेद ओजो मिमानो वि मृधो नुदस्व ॥
सहस्व मन्यो अभिमातिमस्मै रुजन्मृणन्प्रमृणन्प्रेहि शत्रून्। उग्रं ते पाजो नन्वा रुरुध्रे वशी वशं नयासा एकज त्वम् ॥
एको बहूनामसि मन्य ईडिता विशंविशं युद्धाय सं शिशाधि। अकृत्तरुक्त्वया युजा वयं द्युमन्तं घोषं विजयाय कृण्मसि ॥
विजेषकृदिन्द्र इवानवब्रवोस्माकं मन्यो अधिपा भवेह। प्रियं ते नाम सहुरे गृणीमसि विद्मा तमुत्सं यत आबभूथ ॥
आभूत्या सहजा वज्र सायक सहो बिभर्षि सहभूत उत्तरम्। क्रत्वा नो मन्यो सह मेद्येधि महाधनस्य पुरुहूत संसृजि ॥
संसृष्टं धनमुभयं समाकृतमस्मभ्यं धत्तां वरुणश्च मन्युः। भियो दधाना हृदयेषु शत्रवः पराजितासो अप नि लयन्ताम् ॥
यस्ते मन्योऽविधद्वज्र सायक सह ओजः पुष्यति विश्वमानुषक्। साह्याम दासमार्यं त्वया युजा वयं सहस्कृतेन सहसा सहस्वता ॥
मन्युरिन्द्रो मन्युरेवास देवो मन्युर्होता वरुणो जातवेदाः। मन्युर्विश ईडते मानुषीर्याः पाहि नो मन्यो तपसा सजोषाः ॥
अभीहि मन्यो तवसस्तवीयान्तपसा युजा वि जहि शत्रून्। अमित्रहा वृत्रहा दस्युहा च विश्वा वसून्या भरा त्वं नः ॥
त्वं हि मन्यो अभिभूत्योजाः स्वयंभूर्भामो अभिमातिषाहः। विश्वचर्षणिः सहुरिः सहीयानस्मास्वोजः पृतनासु धेहि ॥
अभागः सन्नप परेतो अस्मि तव क्रत्वा तविषस्य प्रचेतः। तं त्वा मन्यो अक्रतुर्जिहीडाहं स्वा तनूर्बलदावा न एहि ॥
अयं ते अस्म्युप न एह्यर्वाङ्प्रतीचीनः सहुरे विश्वदावन्। मन्यो वज्रिन्नभि न आ ववृत्स्व हनाव दस्यूंरुत बोध्यापेः ॥
अभि प्रेहि दक्षिणतो भवा नोऽधा वृत्राणि जङ्घनाव भूरि। जुहोमि ते धरुणं मध्वो अग्रमुभावुपांशु प्रथमा पिबाव ॥
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