सविता यन्त्रैः पृथिवीमरम्णादस्कम्भने सविता द्यामदृंहत् । अश्वमिवाधुक्षद्धुनिमन्तरिक्षमतूर्ते बद्धं सविता समुद्रम् ॥
ऋग्वेद में अर्चन्हैरण्यस्तुपः के 5 संदर्भ मिले
सविता यन्त्रैः पृथिवीमरम्णादस्कम्भने सविता द्यामदृंहत् । अश्वमिवाधुक्षद्धुनिमन्तरिक्षमतूर्ते बद्धं सविता समुद्रम् ॥
यत्रा समुद्रः स्कभितो व्यौनदपां नपात्सविता तस्य वेद । अतो भूरत आ उत्थितं रजोऽतो द्यावापृथिवी अप्रथेताम् ॥
पश्चेदमन्यदभवद्यजत्रममर्त्यस्य भुवनस्य भूना । सुपर्णो अङ्ग सवितुर्गरुत्मान्पूर्वो जातः स उ अस्यानु धर्म ॥
गाव इव ग्रामं यूयुधिरिवाश्वान्वाश्रेव वत्सं सुमना दुहाना । पतिरिव जायामभि नो न्येतु धर्ता दिवः सविता विश्ववारः ॥
हिरण्यस्तूपः सवितर्यथा त्वाङ्गिरसो जुह्वे वाजे अस्मिन् । एवा त्वार्चन्नवसे वन्दमान: सोमस्येवांशुं प्रति जागराहम् ॥
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