अशीतिभिस्तिसृभिः सामगेभिरादित्येभिर्वसुभिरङ्गिरोभिः। इष्टापूर्तमवतु नः पितॄणामामुं ददे हरसा दैव्येन ॥
अथर्ववेद में आदित्यगणः, वसुगणः, पितरः, अङ्गिरसः के 4 संदर्भ मिले
अशीतिभिस्तिसृभिः सामगेभिरादित्येभिर्वसुभिरङ्गिरोभिः। इष्टापूर्तमवतु नः पितॄणामामुं ददे हरसा दैव्येन ॥
ये नः सपत्ना अप ते भवन्त्विन्द्राग्निभ्यामव बाधामह एनान्। आदित्या रुद्रा उपरिस्पृशो नो उग्रं चेत्तारमधिराजमक्रत ॥
अर्वाञ्चमिन्द्रममुतो हवामहे यो गोजिद्धनजिदश्वजिद्यः। इमं नो यज्ञं विहवे शृणोत्वस्माकमभूर्हर्यश्व मेदी ॥
आयमगन्त्सविता क्षुरेणोष्णेन वाय उदकेनेहि। आदित्या रुद्रा वसव उन्दन्तु सचेतसः सोमस्य राज्ञो वपत प्रचेतसः ॥
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