त्वया पूर्वमथर्वाणो जघ्नू रक्षांस्योषधे। त्वया जघान कश्यपस्त्वया कण्वो अगस्त्यः ॥
अथर्ववेद में अजशृङ्ग्योषधिः के 8 संदर्भ मिले
त्वया पूर्वमथर्वाणो जघ्नू रक्षांस्योषधे। त्वया जघान कश्यपस्त्वया कण्वो अगस्त्यः ॥
त्वया वयमप्सरसो गन्धर्वांश्चातयामहे। अजशृङ्ग्यज रक्षः सर्वान् गन्धेन नाशय ॥
एयमगन्नोषधीनां वीरुधां वीर्यावती। अजशृङ्ग्यराटकी तीक्ष्णशृङ्गी व्यृषतु ॥
भीमा इन्द्रस्य हेतयः शतं ऋष्टीरयस्मयीः। ताभिर्हविरदान्गन्धर्वानवकादान्व्यृषतु ॥
भीमा इन्द्रस्य हेतयः शतं ऋष्टीर्हिरण्ययीः। ताभिर्हविरदान्गन्धर्वानवकादान्व्यृषतु ॥
अवकादानभिशोचानप्सु ज्योतय मामकान्। पिशाचान्त्सर्वानोषधे प्र मृणीहि सहस्व च ॥
श्वेवैकः कपिरिवैकः कुमारः सर्वकेशकः। प्रियो दृश इव भूत्वा गन्धर्वः सचते स्त्रियस्तमितो नाशयामसि ब्रह्मणा वीर्यावता ॥
जाया इद्वो अप्सरसो गन्धर्वाः पतयो यूयम्। अप धावतामर्त्या मर्त्यान्मा सचध्वम् ॥
वेद पढ़ना प्रत्येक मनुष्य का अधिकार है। जन जन तक वैदिक वांग्मय का प्रचार व प्रसार करना इस वेद पोर्टल का मुख्य उद्देश्य है। यह प्रकल्प आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट के अंतर्गत चल रहा है। इसके अंतर्गत वेद मन्त्रों का डिजिटलीकरण एवं वेद सर्च इंजन विकसित किया जा रहा है। साथ ही विभिन्न भाषाओँ में वेद भाष्यों को भी उपलब्ध कराया जा रहा है। ... आगे पढ़ें
2025 © आर्य समाज - सभी अधिकार सुरक्षित.