स्वप्न स्वप्नाभिकरणेन सर्वं नि ष्वापया जनम्। ओत्सूर्यमन्यान्त्स्वापयाव्युषं जागृतादहमिन्द्र इवारिष्टो अक्षितः ॥
अथर्ववेद में पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप् के 4 संदर्भ मिले
स्वप्न स्वप्नाभिकरणेन सर्वं नि ष्वापया जनम्। ओत्सूर्यमन्यान्त्स्वापयाव्युषं जागृतादहमिन्द्र इवारिष्टो अक्षितः ॥
अमा घृतं कृणुते केवलमाचार्यो भूत्वा वरुणो यद्यदैच्छत्प्रजापतौ। तद्ब्रह्मचारी प्रायच्छत्स्वान्मित्रो अध्यात्मनः ॥
यामिन्द्रेण संधां समधत्था ब्रह्मणा च बृहस्पते। तयाहमिन्द्रसंधया सर्वान्देवानिह हुव इतो जयत मामुतः ॥
मा नः पश्चान्मा पुरस्तान्नुदिष्ठा मोत्तरादधरादुत। स्वस्ति भूमे नो भव मा विदन्परिपन्थिनो वरीयो यावया वधम् ॥
वेद पढ़ना प्रत्येक मनुष्य का अधिकार है। जन जन तक वैदिक वांग्मय का प्रचार व प्रसार करना इस वेद पोर्टल का मुख्य उद्देश्य है। यह प्रकल्प आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट के अंतर्गत चल रहा है। इसके अंतर्गत वेद मन्त्रों का डिजिटलीकरण एवं वेद सर्च इंजन विकसित किया जा रहा है। साथ ही विभिन्न भाषाओँ में वेद भाष्यों को भी उपलब्ध कराया जा रहा है। ... आगे पढ़ें
2025 © आर्य समाज - सभी अधिकार सुरक्षित.