अयं मातायं पितायं जीवातुरागमत् । इदं तव प्रसर्पणं सुबन्धवेहि निरिहि ॥
ऋग्वेद में सुबन्धोर्जीविताह्वानम् के 5 संदर्भ मिले
अयं मातायं पितायं जीवातुरागमत् । इदं तव प्रसर्पणं सुबन्धवेहि निरिहि ॥
यथा युगं वरत्रया नह्यन्ति धरुणाय कम् । एवा दाधार ते मनो जीवातवे न मृत्यवेऽथो अरिष्टतातये ॥
यथेयं पृथिवी मही दाधारेमान्वनस्पतीन् । एवा दाधार ते मनो जीवातवे न मृत्यवेऽथो अरिष्टतातये ॥
यमादहं वैवस्वतात्सुबन्धोर्मन आभरम् । जीवातवे न मृत्यवेऽथो अरिष्टतातये ॥
न्य१ग्वातोऽव वाति न्यक्तपति सूर्य: । नीचीनमघ्न्या दुहे न्यग्भवतु ते रप: ॥
वेद पढ़ना प्रत्येक मनुष्य का अधिकार है। जन जन तक वैदिक वांग्मय का प्रचार व प्रसार करना इस वेद पोर्टल का मुख्य उद्देश्य है। यह प्रकल्प आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट के अंतर्गत चल रहा है। इसके अंतर्गत वेद मन्त्रों का डिजिटलीकरण एवं वेद सर्च इंजन विकसित किया जा रहा है। साथ ही विभिन्न भाषाओँ में वेद भाष्यों को भी उपलब्ध कराया जा रहा है। ... आगे पढ़ें
2025 © आर्य समाज - सभी अधिकार सुरक्षित.