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यऽए॒ताव॑न्तश्च॒ भूया॑सश्च॒ दिशो॑ रु॒द्रा वि॑तस्थि॒रे। तेषा॑ सहस्रयोज॒नेऽव॒ धन्वा॑नि तन्मसि ॥६३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। ए॒ताव॑न्तः। च॒। भूया॑सः। च॒। दिशः॑। रु॒द्राः। वि॒त॒स्थि॒र इति॑ विऽतस्थि॒रे। तेषा॑म्। स॒ह॒स्र॒यो॒ज॒न इति॑ सहस्रऽयोज॒ने। अव॑। धन्वा॑नि। त॒न्म॒सि॒ ॥६३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:63


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग (ये) जो (एतावन्तः) इतने व्याख्यात किये (च) और (रुद्राः) प्राण वा जीव (भूयांसः) इन से भी अधिक (च) सब प्राण तथा जीव (दिशः) पूर्वादि दिशाओं में (वितस्थिरे) विविध प्रकार से स्थित हैं (तेषाम्) उन के (सहस्रयोजने) हजार योजन के देश में (धन्वानि) आकाश के अवयवों के (अव, तन्मसि) विरुद्ध विस्तृत करते हैं ॥६३ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सब दिशाओं में स्थित जीवों वा वायुओं को यथावत् उपयोग में लाते हैं, उन के सब कार्य सिद्ध होते हैं ॥६३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तदेवाह ॥

अन्वय:

(ये) (एतावन्तः) यावन्तो व्याख्याताः (च) (भूयांसः) तेभ्योऽप्यधिकाः (च) (दिशः) पूर्वाद्याः (रुद्राः) प्राणजीवाः (वितस्थिरे) विविधतया तिष्ठन्ति (तेषाम्) (सहस्रयोजने) एतत्संख्यापरिमिते देशे (अव) विरोधार्थे (धन्वानि) अन्तरिक्षावयवान्। धन्वेत्यन्तरिक्षनामसु पठितम् ॥ (निघण्टौ १.३) (तन्मसि) ॥६३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - वयं य एतावन्तश्च भूयांसश्च रुद्रा दिशो वितस्थिरे तेषां सहस्रयोजने धन्वान्यवतन्मसि ॥६३ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सर्वासु दिक्षु स्थितान् जीवान् वायून् वा यथावदुपयुञ्जते, तेषां सर्वकार्याणि सिद्धानि भवन्ति ॥६३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सर्व दिशांमध्ये स्थित असलेल्या जीवांचा व वायूंचा यथायोग्य उपयोग करून घेतात त्यांची सर्व कामे सिद्ध होतात.