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आ वां॒ विप्र॑ इ॒हाव॒सेऽह्व॒त्स्तोमे॑भिरश्विना । अरि॑प्रा॒ वृत्र॑हन्तमा॒ ता नो॑ भूतं मयो॒भुवा॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vāṁ vipra ihāvase hvat stomebhir aśvinā | ariprā vṛtrahantamā tā no bhūtam mayobhuvā ||

पद पाठ

आ । वा॒म् । विप्रः॑ । इ॒ह । अव॑से । अह्व॑त् । स्तोमे॑भिः । अ॒श्वि॒ना॒ । अरि॑प्रा । वृत्र॑हन्ऽतमा । ता । नः॒ । भू॒त॒म् । म॒यः॒ऽभुवा॑ ॥ ८.८.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:8» मन्त्र:9 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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शिव शंकर शर्मा

राजा सर्वप्रिय होवे, यह शिक्षा इससे देते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे प्रजाओं के मन में व्याप्त अथवा शोभनाश्वयुक्त राजा और अमात्य ! आपको केवल मूर्ख प्रजाएँ ही नहीं बुलाती हैं किन्तु (विप्रः) मेधावी पवित्र जन भी (इह) अपने-२ यज्ञ में (अवसे) रक्षार्थ (स्तोमैः) विविध स्तोत्रों से सत्कार करके (वाम्) आप दोनों को (आ+अह्वन्) अच्छे प्रकार निमन्त्रण देते हैं। (अरिप्ता) हे पापरहित निष्कलङ्क (वृत्रहन्तमा) प्रजावर्गों के विघ्नों और उपद्रवकारियों को हनन करनेवाले और (मयोभुवा) सुखकारी (भूतम्) होवें ॥९॥
भावार्थभाषाः - राजा और राजवर्ग, सबसे मैं पूजित होता हूँ, यह स्वगौरव देख किसी पाप और नीच कर्म में अपने को न गिरावें ॥९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे व्यापक (अरिप्रा) निष्पाप (वृत्रहन्तमा) शत्रुनाशक ! (वाम्) आपको (विप्रः) उपासक ने (इह) यहाँ यज्ञ में (अवसे) रक्षा के लिये (स्तोमेभिः) स्तोत्रों द्वारा (आह्वत्) बुलाया है (ता) वह आप (नः) हमारे लिये (मयोभुवा) सुखप्रद (भूतम्) हों ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! आप पाप से रहित, शत्रुनाशक तथा यज्ञों के रहस्य को जाननेवाले हैं। हम लोग स्तोत्रों द्वारा आपका आह्वान करते हैं, कृपा करके यहाँ यज्ञ में सम्मिलित हों ॥९॥
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शिव शंकर शर्मा

राज्ञा सर्वप्रियेण भाव्यमित्यनया शिक्षते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अश्विना=प्रजानां मनसि स्वगुणैर्व्याप्तौ प्रशस्ताश्वयुक्तौ वा राजाऽमात्यौ ! युवां न केवलं मूर्खा एव आह्वयन्ति किन्तु विप्रो मेधावी जनोऽपि। इहास्मिन् यज्ञे। अवसे=रक्षायै। स्तोमेभिः=स्तोमैः स्तोत्रैः सह। वाम्=युवाम्। आसमन्ताद्। अह्वत्=ह्वयति=निमन्त्रयति। हे अरिप्ता=रिप्तमिति पापनाम। न विद्येते रिप्तं पापं ययोस्तौ अरिप्तौ=निष्कलङ्कौ। हे वृत्रहन्तमा=वृत्राणां विघ्नानाम्, उपद्रवकारिणाञ्च अतिशयेन हन्तारौ देवौ ता=तौ युवाम्। नोऽस्माकम्। मयोभुवा=सुखकारिणौ। भूतम्=भवतमिति प्रार्थये ॥९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे व्यापकौ (अरिप्रा) निष्पापौ (वृत्रहन्तमा) शत्रुनाशकौ ! (वां) युवाम् (विप्रः) उपासकः (इह) यज्ञे (अवसे) रक्षायै (स्तोमेभिः) स्तोत्रैः (आह्वत्) आहूतवान् (ता) तौ (नः) अस्माकम् (मयोभुवा) सुखदौ (भूतम्) भवतम् ॥९॥