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अ॒यं ते॑ शर्य॒णाव॑ति सु॒षोमा॑या॒मधि॑ प्रि॒यः । आ॒र्जी॒कीये॑ म॒दिन्त॑मः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ te śaryaṇāvati suṣomāyām adhi priyaḥ | ārjīkīye madintamaḥ ||

पद पाठ

अ॒यम् । ते॒ । श॒र्य॒णाऽव॑ति । सु॒ऽसोमा॑याम् । अधि॑ । प्रि॒यः । आ॒र्जी॒कीये॑ । म॒दिन्ऽत॑मः ॥ ८.६४.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:64» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:45» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

किसी के यज्ञ में इन्द्र जाता है या नहीं, यह वितर्कणा करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वित्) मैं उपासक वितर्क कर रहा हूँ कि (कस्य+सवनम्) किस पुरुष के याग में वह इन्द्र (अव+गच्छति) जाता है, जो (वृषा) वृषा अर्थात् अभीष्ट वस्तुओं की वर्षा करनेवाला, इस नाम से प्रसिद्ध है और (जुजुष्वान्) जो शुभकर्मियों के ऊपर प्रसन्न होनेवाला है। (कः+उ+स्वित्) कौन ज्ञानी विज्ञानी (इन्द्रम्) उस इन्द्र को (आचके) अच्छे प्रकार जानता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - ईदृग् ऋचाओं से उस परमदेव की अवगम्यता और दुर्बोधता दिखलाई जाती है। उस महती शक्ति को विरले ही विद्वान् जानते हैं ॥८॥
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शिव शंकर शर्मा

कस्यचिदपि सवनमिन्द्रो याति नवेति वितर्कते।

पदार्थान्वयभाषाः - स्विदिति वितर्के। वृषा=वर्षिता कामानाम्। जुजुष्वान्=प्रीयमाणः। इन्द्रः। कस्य सवनं=यागम्। प्रति=अवगच्छति क उ स्विदाचके ॥८॥