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देवता: मरुतः ऋषि: वसिष्ठः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

गृह॑मेधास॒ आ ग॑त॒ म॑रुतो॒ माप॑ भूतन। यु॒ष्माको॒ती सु॑दानवः ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gṛhamedhāsa ā gata maruto māpa bhūtana | yuṣmākotī sudānavaḥ ||

पद पाठ

गृह॑ऽमेधासः। आ। ग॒त॒। मरु॑तः। मा। अप॑। भू॒त॒न॒। यु॒ष्माक॑। ऊ॒ती। सु॒ऽदा॒न॒वः॒ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:59» मन्त्र:10 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:30» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर गृहस्थ कैसे होवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (गृहमेधासः) गृह में बुद्धि जिन की ऐसे (मरुतः) उत्तम मनुष्यो ! आप लोग यहाँ (आ, गत) आइये और (सुदानवः) अच्छे दानवाले (भूतन) हूजिये और (युष्माक) आप लोगों की (ऊती) रक्षण आदि क्रिया के सहित आप लोग (मा) नहीं (अप) विरुद्ध हूजिये ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे गृहस्थ जनो ! आप लोग विद्या आदि श्रेष्ठ गुणों के देनेवाले होकर धर्म्म और पुरुषार्थ के विरुद्ध मत होओ ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्गृहस्थाः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे गृहमेधासो मरुतो ! यूयमत्रागत सुदानवो भूतन युष्माकोती सहिता यूयं माप भूतन ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गृहमेधासः) गृहे मेधा प्रज्ञा येषां ते (आ) (गत) आगच्छत (मरुतः) उत्तमा मनुष्याः (मा) निषेधे (अप) (भूतन) विरुद्धा भवत (युष्माक) युष्माकम् (ऊती) ऊत्या रक्षणाद्यया क्रियया (सुदानवः) सुष्ठु दानाः ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे गृहस्था ! यूयं विद्यादिशुभगुणदातारो भूत्वा धर्मपुरुषार्थविरुद्धा मा भवत ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे गृहस्थांनो ! तुम्ही विद्या इत्यादी श्रेष्ठ गुणांचे दाते व्हा. धर्म व पुरुषार्थाविरुद्ध वागू नका. ॥ १० ॥