उदु॑ श्रि॒य उ॒षसो॒ रोच॑माना॒ अस्थु॑र॒पां नोर्मयो॒ रुश॑न्तः। कृ॒णोति॒ विश्वा॑ सु॒पथा॑ सु॒गान्यभू॑दु॒ वस्वी॒ दक्षि॑णा म॒घोनी॑ ॥१॥
ud u śriya uṣaso rocamānā asthur apāṁ normayo ruśantaḥ | kṛṇoti viśvā supathā sugāny abhūd u vasvī dakṣiṇā maghonī ||
उत्। ऊँ॒ इति॑। श्रि॒ये। उ॒षसः॑। रोच॑मानाः। अस्थुः॑। अ॒पाम्। न। ऊ॒र्मयः॑। रुश॑न्तः। कृ॒णोति॑। विश्वा॑। सु॒ऽपथा॑। सु॒ऽगानि॑। अभू॑त्। ऊँ॒ इति॑। वस्वी॑। दक्षि॑णा। म॒घोनी॑ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब स्त्रियाँ कैसी श्रेष्ठ होती हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ स्त्रियः कीदृश्यो वरा इत्याह ॥
हे पुरुषाः ! याः स्त्रियो रोचमाना उषस इवाऽपां रुशन्त ऊर्मयो न श्रिय उदस्थुस्ता उ सुखप्रदाः सन्ति। या वस्वी दक्षिणेव मघोन्यभूत् सोषर्वदु विश्वा सुपथा सुगानि कृणोति ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात उषा व सूर्याप्रमाणे स्त्रियांच्या गुणांचे वर्णन या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.