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उदु॑ श्रि॒य उ॒षसो॒ रोच॑माना॒ अस्थु॑र॒पां नोर्मयो॒ रुश॑न्तः। कृ॒णोति॒ विश्वा॑ सु॒पथा॑ सु॒गान्यभू॑दु॒ वस्वी॒ दक्षि॑णा म॒घोनी॑ ॥१॥

English Transliteration

ud u śriya uṣaso rocamānā asthur apāṁ normayo ruśantaḥ | kṛṇoti viśvā supathā sugāny abhūd u vasvī dakṣiṇā maghonī ||

Pad Path

उत्। ऊँ॒ इति॑। श्रि॒ये। उ॒षसः॑। रोच॑मानाः। अस्थुः॑। अ॒पाम्। न। ऊ॒र्मयः॑। रुश॑न्तः। कृ॒णोति॑। विश्वा॑। सु॒ऽपथा॑। सु॒ऽगानि॑। अभू॑त्। ऊँ॒ इति॑। वस्वी॑। दक्षि॑णा। म॒घोनी॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:64» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब स्त्रियाँ कैसी श्रेष्ठ होती हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे पुरुषो ! जो स्त्रियाँ (रोचमानाः) दीप्तिमती (उषसः) प्रभातवेलाओं के समान वा (अपाम्) जलों की (रुशन्तः) हिंसती अर्थात् फूलों को विदारती हुई (ऊर्मयः) तरङ्गों के (न) समान (श्रिये) शोभा के लिये (उत्, अस्थुः) उठती हैं, वे (उ) ही सुख देनेवाली हैं जो (वस्वी) वसुओं की यह (दक्षिणा) दक्षिणा के समान (मघोनी) परमधनयुक्त (अभूत्) होती है, वह उषा के समान (उ) ही (विश्वा) समस्त (सुपथा) शुभमार्गवाले (सुगानि) जिनमें सुन्दरता से चलें, उन कामों को (कृणोति) करती है ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे पुरुषो ! जैसे प्रभातवेलाएँ रुचि करनेवाली होती हैं, वैसी हुई स्त्रियाँ श्रेष्ठ हैं वा जैसे जलतरंगें तटों को छिन्नभिन्न करती हैं, वैसे ही जो स्त्रियाँ दुःखों को छिन्न-भिन्न करती हैं और जो दिन के तुल्य समस्त गृहकृत्यों को प्रकाशित करती हैं, वे ही सर्वदा मङ्गलकारिणी होती हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ स्त्रियः कीदृश्यो वरा इत्याह ॥

Anvay:

हे पुरुषाः ! याः स्त्रियो रोचमाना उषस इवाऽपां रुशन्त ऊर्मयो न श्रिय उदस्थुस्ता उ सुखप्रदाः सन्ति। या वस्वी दक्षिणेव मघोन्यभूत् सोषर्वदु विश्वा सुपथा सुगानि कृणोति ॥१॥

Word-Meaning: - (उत्) (उ) (श्रिये) शोभायै (उषसः) प्रभातवेला इव (रोचमानाः) रुचिमत्यः (अस्थुः) तिष्ठन्ति (अपाम्) जलानाम् (न) इव (ऊर्मयः) तरङ्गाः (रुशन्तः) हिंसन्तः (कृणोति) (विश्वा) सर्वाणि (सुपथा) शोभनाः पन्था येषु तानि (सुगानि) सुष्ठु गच्छन्ति येषु तानि (अभूत्) भवति (उ) (वस्वी) वसूनामियम् (दक्षिणा) दक्षिणेव (मघोनी) परमधनयुक्ता ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे पुरुषा ! यथोषसो रुचिकरा भवन्ति तथाभूताः स्त्रियो वराः सन्ति यथा जलतरङ्गास्तटाञ्छिन्दन्ति तथैव या दुःखानि कृन्तन्ति याश्च दिनवत्सर्वाणि गृहकृत्यानि प्रकाशयन्ति ता एव सर्वदा मङ्गलकारिण्यो भवन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात उषा व सूर्याप्रमाणे स्त्रियांच्या गुणांचे वर्णन या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे श्रेष्ठ माणसांनो ! जशी प्रभातवेळ रुची उत्पन्न करते तशा स्त्रिया श्रेष्ठ असतात. जसे जलतरंग किनाऱ्यांना छिन्नभिन्न करतात, तसेच ज्या स्त्रिया दुःख नष्ट करतात व दिवसाप्रमाणे संपूर्ण गृहकृत्ये करतात त्या सदैव कल्याणकारी असतात. ॥ १ ॥