परि॑ तृन्धि पणी॒नामार॑या॒ हृद॑या कवे। अथे॑म॒स्मभ्यं॑ रन्धय ॥५॥
pari tṛndhi paṇīnām ārayā hṛdayā kave | athem asmabhyaṁ randhaya ||
परि॑। तृ॒न्धि॒। प॒णी॒नाम्। आर॑या। हृद॑या। क॒वे॒। अथ॑। ई॒म्। अ॒स्मभ्य॑म्। र॒न्ध॒य॒ ॥५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर राजा से कौन पीड़ा देने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्नृपेण के पीडनीया इत्याह ॥
हे कवे ! त्वमारया पणीनां हृदया परि तृन्धि। अथाऽस्मभ्यमीं दुष्टान् रन्धयाऽस्मभ्यं सुखं देहि ॥५॥