कि॒त॒वासो॒ यद्रि॑रि॒पुर्न दी॒वि यद्वा॑ घा स॒त्यमु॒त यन्न वि॒द्म। सर्वा॒ ता वि ष्य॑ शिथि॒रेव॑ दे॒वाधा॑ ते स्याम वरुण प्रि॒यासः॑ ॥८॥
kitavāso yad riripur na dīvi yad vā ghā satyam uta yan na vidma | sarvā tā vi ṣya śithireva devādhā te syāma varuṇa priyāsaḥ ||
कि॒त॒वासः॑। यत्। रि॒रि॒पुः। न॒। दी॒वि। यत्। वा॒। घ॒। स॒त्यम्। उ॒त। यत्। न। वि॒द्म। सर्वा॑। ता। वि। स्य॒। शि॒थि॒राऽइ॑व। दे॒व॒। अध॑। ते॒। स्या॒म॒। व॒रु॒ण॒। प्रि॒यासः॑ ॥८॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
कौन से मनुष्य सत्कार और कौन तिरस्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
के मनुष्याः सत्कर्त्तव्यास्तिरस्करणीयाश्चेत्याह ॥
हे वरुण देव ! यद्ये कितवासो दीवि न रिरिपुर्यद्वा सत्यमुत न विद्म यद् घा न विद्म ता सर्वा शिथिरेव त्वं विष्य यतोऽधा वयं ते प्रियासः स्याम ॥८॥