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कि॒त॒वासो॒ यद्रि॑रि॒पुर्न दी॒वि यद्वा॑ घा स॒त्यमु॒त यन्न वि॒द्म। सर्वा॒ ता वि ष्य॑ शिथि॒रेव॑ दे॒वाधा॑ ते स्याम वरुण प्रि॒यासः॑ ॥८॥

English Transliteration

kitavāso yad riripur na dīvi yad vā ghā satyam uta yan na vidma | sarvā tā vi ṣya śithireva devādhā te syāma varuṇa priyāsaḥ ||

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Pad Path

कि॒त॒वासः॑। यत्। रि॒रि॒पुः। न॒। दी॒वि। यत्। वा॒। घ॒। स॒त्यम्। उ॒त। यत्। न। वि॒द्म। सर्वा॑। ता। वि। स्य॒। शि॒थि॒राऽइ॑व। दे॒व॒। अध॑। ते॒। स्या॒म॒। व॒रु॒ण॒। प्रि॒यासः॑ ॥८॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:85» Mantra:8 | Ashtak:4» Adhyay:4» Varga:31» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:6» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कौन से मनुष्य सत्कार और कौन तिरस्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वरुण) श्रेष्ठ (देव) विद्वन् ! (यत्) जो (कितवासः) जुआ करनेवाले (दीवि) जुआरूप कर्म्म में (न) नहीं (रिरिपुः) आरोपित करते हैं (वा) अथवा (यत्) जिस (सत्यम्) श्रेष्ठों में श्रेष्ठ को (उत) तर्क वितर्क से (न) न (विद्म) जानें और (यत्) जिसे (घा) ही नहीं जानें (ता) उन (सर्वा) सम्पूर्णों को (शिथिरेव) जैसे शिथिल वैसे आप (वि, स्य) अन्त करिये जिससे (अधा) इसके अनन्तर हम लोग (ते) आपके (प्रियासः) प्रसन्न प्यारे (स्याम) होवें ॥८॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो छली मनुष्य जुआ आदि कर्म्म करें, वे ताड़ना करने योग्य और जो सत्य आचरण करें, वे सत्कार करने योग्य हैं ॥८॥ इस सूक्त में राजा, ईश्वर, मेघ और विद्वान् के गुण कर्म वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पच्चासीवाँ सूक्त और एकतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

के मनुष्याः सत्कर्त्तव्यास्तिरस्करणीयाश्चेत्याह ॥

Anvay:

हे वरुण देव ! यद्ये कितवासो दीवि न रिरिपुर्यद्वा सत्यमुत न विद्म यद् घा न विद्म ता सर्वा शिथिरेव त्वं विष्य यतोऽधा वयं ते प्रियासः स्याम ॥८॥

Word-Meaning: - (कितवासः) द्यूतकाराः (यत्) ये (रिरिपुः) आरोपयन्ति (न) निषेधे (दीवि) द्यूतकर्म्मणि (यत्) (वा) (घा) एव। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (सत्यम्) सत्सु साधुम् (उत) (यत्) (न) (विद्म) (सर्वा) सर्वाणि (ता) तानि (वि) (स्य) अन्तं कुरु (शिथिरेव) यथा शिथिलाः (देव) विद्वन् (अधा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (ते) तव (स्याम) (वरुण) (प्रियासः) प्रसन्नाः ॥८॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये छलिनो मनुष्या द्यूतादिकर्म्म कुर्य्युस्ते ताडनीया ये च सत्यमाचरणं कुर्य्युस्ते सत्कर्त्तव्या इति ॥८॥ अत्र राजेश्वरमेघविद्वद्गुणकर्मवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चाशीतितमं सूक्तमेकत्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! छळ कपट करणाऱ्या माणसांनी द्युत वगैरे कर्म केल्यास ती ताडना करण्यायोग्य असतात व जी सत्याचरण करतात ती सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ८ ॥