तम॑ध्व॒रेष्वी॑ळते दे॒वं मर्ता॒ अम॑र्त्यम्। यजि॑ष्ठं॒ मानु॑षे॒ जने॑ ॥२॥
tam adhvareṣv īḻate devam martā amartyam | yajiṣṭham mānuṣe jane ||
तम्। अ॒ध्व॒रेषु॑। ई॒ळ॒ते॒। दे॒वम्। मर्ताः॑। अम॑र्त्यम्। यजि॑ष्ठम्। मानु॑षे। जने॑ ॥२॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तेमव विषयमाह ॥
ये मर्त्ता अध्वरेषु मानुषे जने तममर्त्यं यजिष्ठं देवमग्निमिव स्वप्रकाशं परमात्मानमीळते ते हि पुष्कलं सुखमश्नुवते ॥२॥