क॒था ह॒ तद्वरु॑णाय॒ त्वम॑ग्ने क॒था दि॒वे ग॑र्हसे॒ कन्न॒ आगः॑। क॒था मि॒त्राय॑ मी॒ळ्हुषे॑ पृथि॒व्यै ब्रवः॒ कद॑र्य॒म्णे कद्भगा॑य ॥५॥
kathā ha tad varuṇāya tvam agne kathā dive garhase kan na āgaḥ | kathā mitrāya mīḻhuṣe pṛthivyai bravaḥ kad aryamṇe kad bhagāya ||
क॒था। ह॒। तत्। वरु॑णाय। त्वम्। अ॒ग्ने॒। क॒था। दि॒वे। ग॒र्ह॒से॒। कत्। नः॒। आगः॑। क॒था। मि॒त्राय॑। मी॒ळ्हुषे॑। पृ॒थि॒व्यै। ब्रवः॑। कत्। अ॒र्य॒म्णे। कत्। भगा॑य॥५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब उपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथोपदेशकविषयमाह ॥
हे अग्ने ! त्वं ह कथा वरुणाय गर्हसे कथा दिवे गर्हसे न आगः कद् गर्हसे मीळ्हुषे मित्राय कथा गर्हसे पृथिव्यै तद्वचः कद् ब्रवोऽर्य्यम्णे भगाय च कद् ब्रवः ॥५॥