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क॒था ह॒ तद्वरु॑णाय॒ त्वम॑ग्ने क॒था दि॒वे ग॑र्हसे॒ कन्न॒ आगः॑। क॒था मि॒त्राय॑ मी॒ळ्हुषे॑ पृथि॒व्यै ब्रवः॒ कद॑र्य॒म्णे कद्भगा॑य ॥५॥

English Transliteration

kathā ha tad varuṇāya tvam agne kathā dive garhase kan na āgaḥ | kathā mitrāya mīḻhuṣe pṛthivyai bravaḥ kad aryamṇe kad bhagāya ||

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Pad Path

क॒था। ह॒। तत्। वरु॑णाय। त्वम्। अ॒ग्ने॒। क॒था। दि॒वे। ग॒र्ह॒से॒। कत्। नः॒। आगः॑। क॒था। मि॒त्राय॑। मी॒ळ्हुषे॑। पृ॒थि॒व्यै। ब्रवः॑। कत्। अ॒र्य॒म्णे। कत्। भगा॑य॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:3» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब उपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान ! (त्वम्) आप (ह) ही (कथा) किस प्रकार (वरुणाय) श्रेष्ठ की (गर्हसे) निन्दा करते हो (कथा) किस प्रकार (दिवे) प्रकाशमान के लिये निन्दा करते हो (नः) हम लोगों के (आगः) अपराध की (कत्) कब निन्दा करते हो (मीळ्हुषे) सुख बढ़ानेवाले (मित्राय) मित्र के लिये (कथा) किस प्रकार निन्दा करते हो (पृथिव्यै) पृथिवी के सदृश वर्त्तमान स्त्री के लिये (तत्) उस वचन को (कत्) कब (ब्रवः) कहो (अर्य्यम्णे) न्यायाधीश के लिये और (भगाय) ऐश्वर्य्य के लिये (कत्) कब कहो ॥५॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जो राजा श्रेष्ठ वा विद्वानों की निन्दा करे, वह आप लोगों से रोकने योग्य है और सब राजकर्मों की सिद्धि के लिये समयव्यवस्था करनी चाहिये और जब-जब जो-जो कर्म करना हो तब-तब वह-वह कर्म करना चाहिये । इस प्रकार राजा को उपदेश करना चाहिये, जब मित्रद्रोह का आचरण करे तभी उसको शिक्षा देनी चाहिये, ऐसा करने पर राजा और प्रजा दोनों की निरन्तर उन्नति होवे ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथोपदेशकविषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! त्वं ह कथा वरुणाय गर्हसे कथा दिवे गर्हसे न आगः कद् गर्हसे मीळ्हुषे मित्राय कथा गर्हसे पृथिव्यै तद्वचः कद् ब्रवोऽर्य्यम्णे भगाय च कद् ब्रवः ॥५॥

Word-Meaning: - (कथा) केन प्रकारेण (ह) किल (तत्) (वरुणाय) श्रेष्ठाय (त्वम्) (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (कथा) (दिवे) प्रकाशमानाय (गर्हसे) निन्दसि (कत्) कदा (नः) अस्माकम् (आगः) अपराधम् (कथा) (मित्राय) सख्ये (मीळ्हुषे) सुखवर्धकाय (पृथिव्यै) पृथिवीवद्वर्त्तमानायै स्त्रियै (ब्रवः) ब्रूयाः (कत्) कदा (अर्यम्णे) न्यायाधीशाय (कत्) कदा (भगाय) ऐश्वर्य्याय ॥५॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! यदि राजा श्रेष्ठस्य विदुषां वा निन्दां कुर्य्यात् तदैव भवद्भिर्निरोद्धव्यः सर्वेषां राजकर्म्मणां सिद्धये समयव्यवस्था कार्य्या यदा यदा यत् यत्कर्म कर्त्तव्यं भवेत्तदा तदा तत्तत्कर्म्म कर्त्तव्यमिति राजोपदेष्टव्यो यदा मित्रद्रोहमाचरेत् तदैव शिक्षणीय एवं कृते राजप्रजयोः सततमुन्नतिर्भवेत् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो ! जो राजा श्रेष्ठ किंवा विद्वानाची निंदा करतो त्याला रोखले पाहिजे. सर्व राजकर्म सिद्ध करण्यासाठी वेळेची तरतूद केली पाहिजे व जेव्हा जेव्हा जे कर्म करावयाचे तेव्हा तेव्हा ते कर्म केले पाहिजे अशा प्रकारचा राजाला उपदेश करावा. जेव्हा मित्रद्रोहाचे आचरण घडेल तेव्हा शिक्षण दिले पाहिजे. असे केल्याने राजा व प्रजा या दोन्हींची उन्नती होते. ॥ ५ ॥