प्रत्य॒ग्निरु॒षस॒श्चेकि॑ता॒नोऽबो॑धि॒ विप्रः॑ पद॒वीः क॑वी॒नाम्। पृ॒थु॒पाजा॑ देव॒यद्भिः॒ समि॒द्धोऽप॒ द्वारा॒ तम॑सो॒ वह्नि॑रावः॥
praty agnir uṣasaś cekitāno bodhi vipraḥ padavīḥ kavīnām | pṛthupājā devayadbhiḥ samiddho pa dvārā tamaso vahnir āvaḥ ||
प्रति॑। अ॒ग्निः। उ॒षसः॑। चेकि॑तानः। अबो॑धि। विप्रः॑। प॒द॒ऽवीः। क॒वी॒नाम्। पृ॒थु॒ऽपाजाः॑। दे॒व॒यत्ऽभिः॑। समि॑द्धः। अप॑। द्वारा॑। तम॑सः। वह्निः॑। आ॒व॒रित्या॑वः॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब दश ऋचावाले पाँचवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के संबन्ध से अग्नि के गुणों को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वत्संबन्धेनाग्निगुणानाह।
हे विद्वन् यथाऽग्निरुषसः प्रत्यबोधि तथा चेकितानः कवीनां पदवीः पृथुपाजा विप्रो देवयद्भिः सह प्रत्यबोधि। यथा समिद्धो वह्निस्तमस आवृतानि द्वारापावस्तथा विद्वान्भवेत् ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात विद्वान व अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तार्थाबरोबर मागच्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणावी.