अ॒यं सो अ॒ग्निर्यस्मि॒न्त्सोम॒मिन्द्रः॑ सु॒तं द॒धे ज॒ठरे॑ वावशा॒नः। स॒ह॒स्रिणं॒ वाज॒मत्यं॒ न सप्तिं॑ सस॒वान्त्सन्त्स्तू॑यसे जातवेदः॥
ayaṁ so agnir yasmin somam indraḥ sutaṁ dadhe jaṭhare vāvaśānaḥ | sahasriṇaṁ vājam atyaṁ na saptiṁ sasavān san stūyase jātavedaḥ ||
अ॒यम्। सः। अ॒ग्निः। यस्मि॑न्। सोम॑म्। इन्द्रः॑। सु॒तम्। द॒धे। ज॒ठरे॑। वा॒व॒शा॒नः। स॒ह॒स्रिण॑म्। वाज॑म्। अत्य॑म्। न। सप्ति॑म्। स॒स॒वान्। सन्। स्तू॒य॒से॒। जा॒त॒ऽवे॒दः॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब बाईसवें सूक्त का प्रारम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र से अग्नि के गुणवर्णन विषय को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाग्निगुणमाह।
हे जातवेदो ! यस्मिन्नयमग्निः सहस्रिणं वाजमत्यं न सप्तिं दधे तस्मिन् वावशान इन्द्रो भवान् जठरे सुतं सोमन्दधे स त्वं ससवान् सन् स्तूयसे ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.