कनि॑क्रदज्ज॒नुषं॑ प्रब्रुवा॒ण इय॑र्ति॒ वाच॑मरि॒तेव॒ नाव॑म्। सु॒म॒ङ्गल॑श्च शकुने॒ भवा॑सि॒ मा त्वा॒ का चि॑दभि॒भा विश्व्या॑ विदत्॥
kanikradaj januṣam prabruvāṇa iyarti vācam ariteva nāvam | sumaṅgalaś ca śakune bhavāsi mā tvā kā cid abhibhā viśvyā vidat ||
कनि॑क्रदत्। ज॒नुष॑म्। प्र॒ऽब्रु॒वा॒णः। इय॑र्ति। वाच॑म्। अ॒रि॒ताऽइ॑व। नाव॑म्। सु॒ऽम॒ङ्गलः॑। च॒। श॒कु॒ने॒। भवा॑सि। मा। त्वा॒। का। चि॒त्। अ॒भि॒ऽभा। विश्व्या॑। वि॒द॒त्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब तीन चावाले बयालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में उपदेशक के गुणों को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथोपदेशकगुणानाह।
हे शकुने शक्तिमन् कनिक्रदज्जनुषं प्रब्रुवाणोऽरितेवं वाचं नावं चेयर्त्ति तथा सुमङ्गलो भवासि काचिद्विश्व्या अभिभा त्वामाविदत् ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात उपदेशकाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.