पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) इस सोम-शान्तस्वरूप परमात्मा के (अन्ये चतुर्दश) अन्य चौदह (महिमानः) महिमारूप भुवन-लोकभूमियाँ भूः, भुवः, स्वः आदि सात शरीर में तथा संसार में सात ऐसे चौदह परमात्मा की महिमारूप हैं, (धीराः) बुद्धिमान् ध्यानी योगीजन (वाचा) वाणी से (तम्) उस परमात्मा को (सप्त प्र नयन्ति) सात-सात महिमाओं को प्रकृष्टरूप में अपने अन्दर बिठाते हैं (आप्नानम्) उस व्याप्त होते हुए (तीर्थम्) संसारसागर से तरानेवाले को (कः) कौन-कोई विरला (इह) इस संसार में (प्र वोचत्) कहे-उसका प्रवचन करे (येन पथा) जिस मार्ग से (सुतस्य) सम्पादित-निष्पादित आनन्दरस के उपासक (प्रपिबन्ते) प्रकृष्टरूप में पान करते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - भूः, भुवः आदि प्राणकेन्द्र शरीर के सात हैं, जो प्राणायामवाले मन्त्र में कहे गये हैं तथा सात लोकस्तर भूः, भुवः आदि संसार में हैं। ये दोनों चौदह उसकी महिमारूप हैं, इनके द्वारा बुद्धिमान् ध्यानी योगीजन उस परमात्मा को अपने अन्दर बिठाते हैं, वह संसारसागर से तरानेवाला है, उपासकजन उसका आनन्दरसपान करते हैं ॥७॥