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प्र तमि॑न्द्र नशीमहि र॒यिं गोम॑न्तम॒श्विन॑म् । प्र ब्रह्म॑ पू॒र्वचि॑त्तये ॥

English Transliteration

pra tam indra naśīmahi rayiṁ gomantam aśvinam | pra brahma pūrvacittaye ||

Pad Path

प्र । तम् । इ॒न्द्र॒ । न॒शी॒म॒हि॒ । र॒यिम् । गोऽम॑न्तम् । अ॒श्विन॑म् । प्र । ब्रह्म॑ । पू॒र्वऽचि॑त्तये ॥ ८.६.९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:6» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:9


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनरपि इन्द्र की प्रार्थना करते हैं।

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमैश्वर्य्यशाली महेश ! हम उपासकगण (तम्) उस सुप्रसिद्ध (गोमन्तम्) गवादिपशुयुक्त, यद्वा प्रशस्तेन्द्रियुक्त तथा (अश्विनम्) अश्वों से संयुक्त, यद्वा प्रशस्तमनोयुक्त (रयिम्) धन को आपकी कृपा से (प्र+नशीमहि) अच्छे प्रकार प्राप्त करें। तथा (पूर्वचित्तये) पूर्ण ज्ञान के लिये (ब्रह्म) बृहत् वेद को यद्वा स्तोत्रशक्ति को प्राप्त करें ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्यों ! गौ और अश्व आदि धन पाकर निज और दूसरों का उपकार करें, यह इसका आशय है ॥९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! हम (गोमन्तम्) भास्वर और (अश्विनम्) व्यापक (तं, रयिम्) ऐसे धन को (प्र, नशीमहि) प्राप्त करें और (पूर्वचित्तये) अनादि ज्ञान के लिये (ब्रह्म) वेद (प्र) प्राप्त करें ॥९॥
Connotation: - हे परमपिता परमात्मन् ! आप ऐसी कृपा करें कि हम अपने कल्याणार्थ उत्तमोत्तम धन लाभ करें और अनादि ज्ञान का भण्डार जो वेद है, वह हमको प्राप्त हो, जिसके आश्रित कर्मों का अनुष्ठान करते हुए ऐश्वर्य्य प्राप्त करने के अधिकारी बनें, यह हमारी प्रार्थना है ॥९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनरपीन्द्रः प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र=परमैश्वर्य्यशालिन् महेश ! वयं तम्=सुप्रसिद्धम्। गोमन्तम्=प्रशस्तगोपशुसहितम्। यद्वा। प्रशस्तज्ञान- कर्मेन्द्रिययुक्तम्। गाव इन्द्रियाणि प्रशस्ता गाव इन्द्रियाणि अस्येति गोमान् तम्। पुनः। अश्विनमश्वैर्युक्तम्। यद्वा। वशीभूतमनोऽश्वसंयुतम्। अश्नुते सर्वाणीन्द्रियाणि व्याप्नोतीत्यश्वो मनः। सोऽस्यास्तीत्यश्विनम्। ईदृशं रयिम्=धनम्। त्वत्कृपया। प्र+नशीमहि=प्राप्नुयाम। अपि च। पूर्वचित्तये=पूर्णप्रज्ञानाय। ब्रह्म=बृहन्तं वेदम्। यद्वा। स्तोत्रशक्तिम्। प्र=प्रकर्षेण प्राप्नुयाम ॥९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (गोमन्तम्) भास्वरम् (अश्विनम्) व्यापकम् (तम्, रयिम्) तादृशं धनम् (प्रनशीमहि) प्राप्नवाम (पूर्वचित्तये) अनादित्वज्ञानाय (ब्रह्म) वेदं च (प्र) प्राप्नवाम ॥९॥