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दा॒मानं॑ विश्वचर्षणे॒ऽग्निं वि॑श्वमनो गि॒रा । उ॒त स्तु॑षे॒ विष्प॑र्धसो॒ रथा॑नाम् ॥

English Transliteration

dāmānaṁ viśvacarṣaṇe gniṁ viśvamano girā | uta stuṣe viṣpardhaso rathānām ||

Pad Path

दा॒मान॑म् । वि॒श्व॒ऽच॒र्ष॒णे॒ । अ॒ग्निम् । वि॒श्व॒ऽम॒नः॒ । गि॒रा । उ॒त । स्तु॒षे॒ । विऽस्प॑र्धसः । रथा॑नाम् ॥ ८.२३.२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:23» Mantra:2 | Ashtak:6» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:4» Mantra:2


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SHIV SHANKAR SHARMA

अग्निवाच्य ईश्वर की प्रार्थना के लिये प्रेरणा करते हैं।

Word-Meaning: - उत=और भी (विश्वचर्षणे) हे बहुत अर्थों के देखनेवाले। (विश्वमनः) हे सबके कल्याण चाहनेवाले ऋषिगण ! आप सब (अग्निम्) सर्वाधार परमात्मा की (गिरा) वाणी के द्वारा (स्तुषे) स्तुति करो, जो (विस्पर्धसः) स्पर्धा अर्थात् पराभिभवेच्छा, रागद्वेष, मान, मात्सर्य आदि दोषों से रहित भक्तजन को (रथानाम्) रथ आदि वस्तु (दामानम्) देनेवाला है ॥२॥
Connotation: - जो ईश्वर विविध पदार्थ दे रहा है, वही स्तवनीय है ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (विश्वचर्षणे) हे सूक्ष्मपदार्थवेत्ता (विश्वमनः) सर्वत्र मनोगतिवाले विद्वान् ! (अग्निम्) जो परपक्ष को अपने पक्ष में मिलानेवाला युद्धकुशल विद्वान् है (उत) और (विस्पर्धसः) जो उसके साथ स्पर्धा नहीं करते, उनके लिये (रथानाम्, दामानम्) दिव्यरथों का देनेवाला है, ऐसे युद्धकुशल विद्वान् की (गिरा) सुस्पष्ट वाणी से (स्तुषे) स्तुति करो ॥२॥
Connotation: - “अग्निः कस्माद् अङ्गं नयति संनममानः” निरु० अ० ७ ख० १४=जो परपक्षियों को दबाकर अपने पक्ष में मिला ले, उसका नाम यहाँ “अग्नि” है अथवा आग्नेयास्त्र का प्रयोग करनेवाले का नाम “अग्नि” है। ज्ञानयोगी विद्वान् को उचित है कि वह युद्धविद्याकुशल कर्मयोगी के साथ स्पर्धा न करता हुआ परस्पर मित्रभाव से कर्मसाध्य यानादिकों को प्राप्त कर अपने दिव्य ज्ञान को यथेष्ट प्रकाशित करे ॥२॥ तात्पर्य्य यह है कि युद्धविद्याकुशल कर्मयोगी को अग्निरूप वर्णन करके यह कथन किया है कि ऐसे वीर योद्धा के साथ ईर्ष्या, द्वेष अथवा अमर्ष न करें, किन्तु अपनी अस्त्र-शस्त्रादि शक्तियों को बढ़ाकर उक्त योद्धा के गुणों को अपने में धारण करें ॥२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अग्निनामकेश्वरप्रार्थनायै प्रेरयति।

Word-Meaning: - हे विश्वचर्षणे=बह्वर्थद्रष्टः। हे विश्वमनः=विश्वेषु सर्वेषु जीवेषु कल्याणमनो यस्य। ईदृग् ऋषे ! त्वम्। उत=अपि च। विस्पर्धसः=विगतस्पर्धस्य यजमानस्य। रथानां दामानम्=दातारम्। अग्निम्। गिरा। स्तुषे=स्तुहि ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (विश्वचर्षणे) हे सर्वसूक्ष्मपदार्थबुद्धे (विश्वमनः) सर्वत्र मनोगते ऋषे ! (अग्निम्) अग्निशब्दवाच्यम् (उत) अथ (विस्पर्धसः) स्पर्धारहितस्य (रथानाम्, दामानम्) दिव्ययानानां दातारम् (गिरा, स्तुषे) सुवाचा स्तुहि ॥२॥