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दी॒र्घस्ते॑ अस्त्वङ्कु॒शो येना॒ वसु॑ प्र॒यच्छ॑सि । यज॑मानाय सुन्व॒ते ॥

English Transliteration

dīrghas te astv aṅkuśo yenā vasu prayacchasi | yajamānāya sunvate ||

Pad Path

दी॒र्घः । ते॒ । अ॒स्तु॒ । अ॒ङ्कु॒शः । येन॑ । वसु॑ । प्र॒ऽयच्छ॑सि । यज॑मानाय । सु॒न्व॒ते ॥ ८.१७.१०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:17» Mantra:10 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:23» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:10


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः प्रार्थना विधान करते हैं।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! (ते) तेरा (अङ्कुशः) अङ्कुश नाम का आयुध (दीर्घः+अस्तु) लम्बा होवे। (येन) जिस अङ्कुश से (सुन्वते) शुभकर्मों को करते हुए (यजमानाय) यजमान को (वसु) धन (प्रयच्छसि) देता है ॥१०•॥
Connotation: - यद्यपि भगवान् कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं रखता है, तथापि आरोप करके सर्व वर्णन किया जाता है। जो कोई शुभकर्म करते रहते हैं, वे कदापि अन्नादिकों के अभाव से पीड़ित नहीं होते। यह भगवान् की कृपा है ॥१०॥
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ARYAMUNI

अब योद्धा के लिये आशीर्वादात्मक वचन कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (येन) जिससे (सुन्वते, यजमानाय) यज्ञकर्ता स्वजन को (वसु, प्रयच्छसि) धन देते हैं वह (ते, अङ्कुशः) आपका शस्त्र (दीर्घः, अस्तु) विस्तीर्ण=अप्रतिहत हो ॥१०॥
Connotation: - हे युद्धविजयी योद्धाजनो ! जिन अस्त्र-शस्त्रों से विजय प्राप्त कर यज्ञकर्त्ता यजमान को यज्ञ की पूर्त्यर्थ धन प्रदान करते हो, वे आपके शस्त्र अप्रतिहतगति हों अर्थात् उनकी गति रोकने में कोई समर्थ न हो। यह स्तोता आदि यज्ञकर्ताओं का योद्धा के लिये आशीर्वचन है, जो प्रजा की रक्षानिमित्त यज्ञ में सदैव स्तुतिवाक्यों द्वारा परमात्मा से प्रार्थना करते हैं ॥१०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः प्रार्थना विधीयते।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! ते=तव। अङ्कुशः=सृणिराकर्षणसाधनमायुधम्। दीर्घोऽस्तु=आयतो भवतु। येनाङ्कुशेन साधनेन त्वम्। सुन्वते=शुभानि कर्माणि कुर्वते। यजमानाय। वसु=धनम्। प्रयच्छसि=ददासि ॥१०॥
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ARYAMUNI

अथ योद्धृभ्य आशीर्वादो दीयते।

Word-Meaning: - (येन) यद्द्वारा (सुन्वते, यजमानाय) स्वयज्ञं कुर्वते जनाय (वसु, प्रयच्छसि) धनं ददासि सः (ते, अङ्कुशः) तव शस्त्रम् (दीर्घः) विस्तीर्णः (अस्तु) भवतु ॥१०॥