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ई॒ळेन्यो॑ वो॒ मनु॑षो यु॒गेषु॑ समन॒गा अ॑शुचज्जा॒तवे॑दाः। सु॒सं॒दृशा॑ भा॒नुना॒ यो वि॒भाति॒ प्रति॒ गावः॑ समिधा॒नं बु॑धन्त ॥४॥

English Transliteration

īḻenyo vo manuṣo yugeṣu samanagā aśucaj jātavedāḥ | susaṁdṛśā bhānunā yo vibhāti prati gāvaḥ samidhānam budhanta ||

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Pad Path

ई॒ळेन्यः॑। वः॒। मनु॑षः। यु॒गेषु॑। स॒म॒न॒ऽगाः। अ॒शु॒च॒त्। जा॒तऽवे॑दाः। सु॒ऽस॒न्दृशा॑। भा॒नुना॑। यः। वि॒ऽभाति॑। प्रति॑। गावः॑। स॒म्ऽइ॒धा॒नम्। बु॒ध॒न्त॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:9» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन प्रशंसा योग्य होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (ईळेन्यः) स्तुति के योग्य (समनगाः) संग्राम को प्राप्त होनेवाला (जातवेदाः) विद्या को प्राप्त हुआ (युगेषु) बहुत वर्षों में (वः) तुम (मनुषः) मनुष्यों को (सुसन्दृशा) अच्छे प्रकार दिखानेवाले (भानुना) किरण से सूर्य के समान (विभाति) प्रकाशित करता है और जैसे (समिधानम्) देदीप्यमान के (प्रति) प्रति (गावः) किरण (बुधन्त) बोध के हेतु होते हैं, वैसे (अशुचत्) शुद्ध प्रतीति कराता है, वही मनुष्यों में उत्तम होता है ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य सूर्य्य के सदृश शुभ गुणों का ग्रहण कराके मनुष्यों को प्रकाशित करते हैं, वे प्रशंसा करने योग्य होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः कः प्रशंसनीयो भवतीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! य ईळेन्यस्समनगा जातवेदा युगेषु वो मनुषः सुसंदृशा भानुना सूर्य इव विभाति यथा समिधानं प्रति गावो बुधन्त तथाऽशुचत् स एव नरोत्तमो भवति ॥४॥

Word-Meaning: - (ईळेन्यः) स्तोतुमर्हः (वः) युष्मान् (मनुषः) मननशीलान् (युगेषु) बहुषु वर्षेषु (समनगाः) यः समनं सङ्ग्रामं गच्छति सः (अशुचत्) शोधयति (जातवेदाः) जातविद्यः (सुसंदृशा) सुष्ठु सम्यग् दर्शकेन (भानुना) किरणेन (यः) (विभाति) (प्रति) (गावः) किरणाः (समिधानम्) देदीप्यमानम् (बुधन्त) बोधयन्ति ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः सूर्यवच्छुभान् गुणान् ग्राहयित्वा मनुष्यान् प्रकाशयन्ति ते प्रशंसितुं योग्या जायन्ते ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे सूर्याप्रमाणे शुभगुणांचे ग्रहण करून माणसांना प्रकाशित करतात ती प्रशंसा करण्यायोग्य असतात. ॥ ४ ॥