सु॒सं॒दृक्ते॑ स्वनीक॒ प्रती॑कं॒ वि यद्रु॒क्मो न रोच॑स उपा॒के। दि॒वो न ते॑ तन्य॒तुरे॑ति॒ शुष्म॑श्चि॒त्रो न सूरः॒ प्रति॑ चक्षि भा॒नुम् ॥६॥
susaṁdṛk te svanīka pratīkaṁ vi yad rukmo na rocasa upāke | divo na te tanyatur eti śuṣmaś citro na sūraḥ prati cakṣi bhānum ||
सु॒ऽस॒न्दृक्। ते॒। सु॒ऽअ॒नी॒क॒। प्रती॑कम्। वि। यत्। रु॒क्मः। न। रोच॑से। उ॒पा॒के। दि॒वः। न। ते॒। त॒न्य॒तुः। ए॒ति॒। शुष्मः॑। चि॒त्रः। न। सूरः॑। प्रति॑। च॒क्षि॒ भा॒नुम् ॥६॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह विद्युत् अग्नि कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः सा विद्युत्कीदृशीत्याह ॥
हे स्वनीक ! यस्य ते यत्प्रतीकं रुक्मो नेवास्ति ये उपाके वि रोचसे यस्य ते दिवो न सुसन्दृक् तन्यतुः प्रतीकमेति तस्य शुष्मश्चित्रः सूरो नेवाहं भानुं त्वा प्रति चक्षि ॥६॥
MATA SAVITA JOSHI
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