प्रोथ॒दश्वो॒ न यव॑सेऽवि॒ष्यन्य॒दा म॒हः सं॒वर॑णा॒द्व्यस्था॑त्। आद॑स्य॒ वातो॒ अनु॑ वाति शो॒चिरध॑ स्म ते॒ व्रज॑नं कृ॒ष्णम॑स्ति ॥२॥
prothad aśvo na yavase viṣyan yadā mahaḥ saṁvaraṇād vy asthāt | ād asya vāto anu vāti śocir adha sma te vrajanaṁ kṛṣṇam asti ||
प्रोथ॑त्। अश्वः॑। न। यव॑से। अ॒वि॒ष्यन्। य॒दा। म॒हः। स॒म्ऽवर॑णात्। वि। अस्था॑त्। आत्। अ॒स्य॒। वातः॑। अनु॑। वा॒ति॒। शो॒चिः। अध॑। स्म॒। ते॒। व्रज॑नम्। कृ॒ष्णम्। अ॒स्ति॒ ॥२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह विद्युत् कैसी है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः सा विद्युत्कीदृशी वर्त्तत इत्याह ॥
हे विद्वन् ! यत्ते कृष्णं व्रजनमस्ति तन्महः संवरणाच्छोचिरध स्मास्य वातो [यदा]ऽनु वाति। आत्तदा यवसेऽविष्यन् प्रोथदश्वो न सद्योऽयमग्निरध्वानं व्यस्थात् ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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