वांछित मन्त्र चुनें

प्रोथ॒दश्वो॒ न यव॑सेऽवि॒ष्यन्य॒दा म॒हः सं॒वर॑णा॒द्व्यस्था॑त्। आद॑स्य॒ वातो॒ अनु॑ वाति शो॒चिरध॑ स्म ते॒ व्रज॑नं कृ॒ष्णम॑स्ति ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prothad aśvo na yavase viṣyan yadā mahaḥ saṁvaraṇād vy asthāt | ād asya vāto anu vāti śocir adha sma te vrajanaṁ kṛṣṇam asti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रोथ॑त्। अश्वः॑। न। यव॑से। अ॒वि॒ष्यन्। य॒दा। म॒हः। स॒म्ऽवर॑णात्। वि। अस्था॑त्। आत्। अ॒स्य॒। वातः॑। अनु॑। वा॒ति॒। शो॒चिः। अध॑। स्म॒। ते॒। व्रज॑नम्। कृ॒ष्णम्। अ॒स्ति॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:3» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह विद्युत् कैसी है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो (ते) आपका (कृष्णम्) आकर्षण करने योग्य (व्रजनम्) गमन (अस्ति) है, उसके सम्बन्ध में (महः) महान् (संवरणात्) सम्यक् स्वीकार से (शोचिः) प्रदीपन (अध, स्म) और इसके अनन्तर ही (अस्य) इसके सम्बन्ध में (वातः) वायु (यदा) जब (अनु, वाति) नुकूल चलता है (आत्) अनन्तर तब (यवसे) भक्षण के अर्थ (अविष्यन्) रक्षा करता (प्रोथत्) और शब्द करता हुआ (अश्वः) घोड़े के (न) समान शीघ्र यह अग्निमार्ग को (वि, अस्थात्) व्याप्त होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जब मनुष्य लोग अग्नियान से गमन और विद्युत् से समाचारों को ग्रहण करें तब ये शीघ्र कार्य्यों को सिद्ध कर सकते हैं ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा विद्युत्कीदृशी वर्त्तत इत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यत्ते कृष्णं व्रजनमस्ति तन्महः संवरणाच्छोचिरध स्मास्य वातो [यदा]ऽनु वाति। आत्तदा यवसेऽविष्यन् प्रोथदश्वो न सद्योऽयमग्निरध्वानं व्यस्थात् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रोथत्) शब्दं कुर्वन् (अश्वः) आशुगामी तुरङ्गः (न) इव (यवसे) घासे (अविष्यन्) रक्षणं करिष्यन् (यदा) (महः) महतः (संवरणात्) सम्यक् स्वीकरणात् (वि) विशेषेण (अस्थात्) तिष्ठति (आत्) आनन्तर्ये (अस्य) (वातः) वायुः (अनु) (वाति) गच्छति (शोचिः) प्रदीपनम् (अध) अथ (स्म) एव (ते) तव (व्रजनम्) गमनम् (कृष्णम्) कर्षणीयम् (अस्ति) ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यदा मनुष्या अग्नियानेन गमनं तडिता समाचारांश्च गृह्णीयुतस्तदेते सद्यः कार्याणि साद्धुं शक्नुवन्ति ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा माणसे अग्नियानाने गमन व विद्युतने वार्ता ऐकतात तेव्हा ती तात्काळ कार्यसिद्धी करू शकतात. ॥ २ ॥