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पिबा॒ सोम॑मिन्द्र॒ मन्द॑तु त्वा॒ यं ते॑ सु॒षाव॑ हर्य॒श्वाद्रिः॑। सो॒तुर्बा॒हुभ्यां॒ सुय॑तो॒ नार्वा॑ ॥१॥

English Transliteration

pibā somam indra mandatu tvā yaṁ te suṣāva haryaśvādriḥ | sotur bāhubhyāṁ suyato nārvā ||

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Pad Path

पिब॑। सोम॑म्। इ॒न्द्र॒। मन्द॑तु। त्वा॒। यम्। ते॒। सु॒साव॑। ह॒रि॒ऽअ॒श्व॒। अद्रिः॑। सो॒तुः। बा॒हुऽभ्या॑म्। सुऽय॑तः। न। अर्वा॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:22» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब नव ऋचावाले बाईसवें सूक्त का प्रारम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में मनुष्य क्या करके कैसा हो, इस विषय को उपदेश करते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (हर्यश्च) मनोहर घोड़ेवाले (इन्द्र) रोग नष्टकर्त्ता वैद्यजन ! आप (अर्वा) घोड़े के (न) समान (सोमम्) बड़ी ओषधियों के रस को (पिब) पीओ (यम्) जिसको (अद्रिः) मेघ (सुषाव) उत्पन्न करता है और जो (सोतुः) सार निकालने वा (सुयतः) सार निकालने की और सिद्धि करनेवाले (ते) आपकी (बाहुभ्याम्) बाहुओं से कार्य सिद्धि करता है वह (त्वा) आपको (मन्दतु) आनन्दित करे ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे वैद्यो ! तुम जैसे घोड़े तृण, अन्न और जलादिकों का अच्छे प्रकार सेवन कर पुष्ट होते हैं, वैसे ही बड़ी ओषधियों के रसों को पीकर बलवान् होओ ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्यः किं कृत्वा कीदृशो भवेदित्याह ॥

Anvay:

हे हर्यश्वेन्द्र ! त्वमर्वा न सोमं पिब यमद्रिः सुषाव यः सोतुः सुयतस्ते बाहुभ्यां सुषाव स त्वा मन्दतु ॥१॥

Word-Meaning: - (पिबा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (सोमम्) महौषधिरसम् (इन्द्र) रोगविदारक वैद्य (मन्दतु) आनन्दयतु (त्वा) त्वाम् (यम्) (ते) तव (सुषाव) (हर्यश्व) कमनीयाश्व (अद्रिः) मेघः (सोतुः) अभिषवकर्त्तुः (बाहुभ्याम्) (सुयतः) सुन्वतो निष्पादयतः (न) (अर्वा) वाजी ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे भिषजो ! यूयं यथा वाजिनो तृणान्नजलादिकं संसेव्य पुष्टा भवन्ति तथैव सोमं पीत्वा बलवन्तो भवत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, राजा, शूर सेनापती, अध्यापक, अध्येता, परीक्षा देणारे व उपदेश करणाऱ्यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे वैद्यांनो ! जसे घोडे तृण, अन्न व जल इत्यादी खाऊन पिऊन पुष्ट होतात तसे महौषधींचे रस प्राशन करून बलवान व्हा. ॥ १ ॥