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उ॒ग्रो ज॑ज्ञे वी॒र्या॑य स्व॒धावा॒ञ्चक्रि॒रपो॒ नर्यो॒ यत्क॑रि॒ष्यन्। जग्मि॒र्युवा॑ नृ॒षद॑न॒मवो॑भिस्त्रा॒ता न॒ इन्द्र॒ एन॑सो म॒हश्चि॑त् ॥१॥

English Transliteration

ugro jajñe vīryāya svadhāvāñ cakrir apo naryo yat kariṣyan | jagmir yuvā nṛṣadanam avobhis trātā na indra enaso mahaś cit ||

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Pad Path

उ॒ग्रः। ज॒ज्ञे॒। वी॒र्या॑य। स्व॒धाऽवा॑न्। चक्रिः॑। अपः॑। नर्यः॑। यत्। क॒रि॒ष्यन्। जग्मिः॑। युवा॑। नृ॒ऽसद॑नम्। अवः॑ऽभिः। त्रा॒ता। नः॒। इन्द्रः॑। एन॑सः। म॒हः। चि॒त् ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:20» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पञ्चमाष्टक के तीसरे अध्याय तथा दश ऋचावाले बीसवें सूक्त का आरम्भ है, जिसके पहले मन्त्र में कैसा राजा श्रेष्ठ हो, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (यत्) जो (नर्यः) मनुष्यों में साधु उत्तम जन (स्वधावान्) बहुत धनधान्य से युक्त (चक्रिः) करनेवाला (उग्रः) तेजस्वी (युवा) जवान मनुष्य (नृषदनम्) मनुष्यों के स्थान को (जग्मिः) जानेवाला (अवोभिः) रक्षा आदि से पालना (करिष्यन्) करता हुआ (त्राता) रक्षा करनेवाला सूर्य जैसे (अपः) जलों को (चित्) वैसे (इन्द्रः) राजा (वीर्याय) पराक्रम के लिये (जज्ञे) उत्पन्न हो और (महः) महान् (एनसः) पापाचरण से (नः) हम लोगों को अलग रखता है, वही राजा होने के योग्य है ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो मनुष्यों का हितकारी पिता के समान पालने और उपदेश करनेवाले के समान पापाचरण से अलग रखनेवाला, सभा में स्थित होकर न्यायकर्ता तथा धन, ऐश्वर्य और पराक्रम को निरन्तर बढ़ाता है, उसी को सब मनुष्य राजा मानें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ कीदृशो राजा श्रेष्ठः स्यादित्याह ॥

Anvay:

यद्यो नर्यः स्वधावाञ्चकिरुग्रो युवा नृषदनं जग्मिरवोभिः पालनं करिष्यँस्त्राता सूर्योऽपश्चिदिवेन्द्रो वीर्याय जज्ञे मह एनसो नोऽस्मान् पृथग्रक्षति स एव राजा भवितुं योग्यः ॥१॥

Word-Meaning: - (उग्रः) तेजस्वी (जज्ञे) जायते (वीर्याय) पराक्रमाय (स्वधावान्) बहुधनधान्ययुक्तः (चक्रिः) कर्ता (अपः) जलानि (नर्यः) नृषु साधुः (यत्) यः (करिष्यन्) (जग्मिः) गन्ता (युवा) प्राप्तयौवनः (नृषदनम्) नृणां स्थानम् (अवोभिः) रक्षादिभिः (त्राता) रक्षकः (नः) अस्मानस्माकं वा (इन्द्रः) सूर्य इव राजा (एनसः) पापाचरणात् (महः) महतः (चित्) इव ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो मनुष्याणां हितकारी पितृवत्पालक उपदेशकवत्पापाचरणात् पृथक्कर्त्ता सभायां स्थित्वा न्यायकर्त्ता धनैश्वर्यपराक्रमांश्च सततं वर्धयति तमेव सर्वे मनुष्या राजानं मन्यन्ताम् ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात राजा, सूर्य, बलिष्ठ, सेनापती, सेवक, अध्यापक, अध्येता, मित्र, दाता व रचनाकारांचे कृत्य व गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो माणसांचा हितकर्ता, पित्याप्रमाणे पालक व उपदेशकांप्रमाणे पापाचरणापासून पृथक करणारा असतो. तसेच सभेत स्थित असून न्यायकर्ता असतो. धन, ऐश्वर्य, पराकम सतत वाढवितो. त्यालाच सर्व माणसांनी राजा मानावे. ॥ १ ॥