यः पञ्च॑ चर्ष॒णीर॒भि नि॑ष॒साद॒ दमे॑दमे। क॒विर्गृ॒हप॑ति॒र्युवा॑ ॥२॥
yaḥ pañca carṣaṇīr abhi niṣasāda dame-dame | kavir gṛhapatir yuvā ||
यः। पञ्च॑। च॒र्ष॒णीः। अ॒भि। नि॒ऽस॒साद॑। दमे॑ऽदमे। क॒विः। गृ॒हऽप॑तिः। युवा॑ ॥२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वे संन्यासी और गृहस्थ परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तौ यतिगृहस्थौ परस्परं कथं वर्तेयातामित्याह ॥
यः कविरतिथिर्दमेदमे पञ्च चर्षणीरभिनिषसाद तं युवा गृहपतिः सततं सत्कुर्यात् ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A