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उ॒प॒सद्या॑य मी॒ळ्हुष॑ आ॒स्ये॑ जुहुता ह॒विः। यो नो॒ नेदि॑ष्ठ॒माप्य॑म् ॥१॥

English Transliteration

upasadyāya mīḻhuṣa āsye juhutā haviḥ | yo no nediṣṭham āpyam ||

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Pad Path

उ॒प॒ऽसद्या॑य। मी॒ळ्हुषे॑। आ॒स्ये॑। जु॒हु॒त॒। ह॒विः। यः। नः॒। नेदि॑ष्ठम्। आप्य॑म् ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:15» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पन्द्रहवें सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में अतिथि कैसा हो, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (नः) हमारे (नेदिष्ठम्) अति निकट (आप्यम्) प्राप्त होने योग्य को प्राप्त होता है उस (उपसद्याय) समीप में स्थापन करने योग्य (मीळ्हुषे) जल से जैसे, वैसे सत्य उपदेशों से सींचनेवाले के लिये (आस्ये) मुख में (हविः) देने योग्य वस्तु को (जुहुत) देओ ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो यति समीप प्राप्त हो उसका तुम सब लोग सत्कार करो और अन्नादि का भोजन कराओ ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाऽतिथिः कीदृशो भवतीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो नो नेदिष्ठमाप्यं प्राप्नोति तस्मै मीळ्हुष उपसद्यायाऽऽस्ये हविर्जुहुत ॥१॥

Word-Meaning: - (उपसद्याय) समीपे स्थापयितुं योग्याय (मीहळुषे) वारिणेव सत्योपदेशैस्सेचकाय (आस्ये) मुखे (जुहुता) दत्त। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (हविः) होतुं दातुमर्हमन्नादिकम् (यः) (नः) अस्माकम् (नेदिष्ठम्) अति निकटम् (आप्यम्) प्राप्तुं योग्यम् ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यो यतिरन्तिकं प्राप्नुयात्तं सर्वे सत्कुरुताऽन्नादिकञ्च भोजयत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नीच्या दृष्टांताने राजा व राणीच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो! जो यती तुमच्याजवळ येईल त्याचा सत्कार करा व अन्न इत्यादी भोजन द्या. ॥ १ ॥