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नाहं तन्तुं॒ न वि जा॑ना॒म्योतुं॒ न यं वय॑न्ति सम॒रेऽत॑मानाः। कस्य॑ स्वित्पु॒त्र इ॒ह वक्त्वा॑नि प॒रो व॑दा॒त्यव॑रेण पि॒त्रा ॥२॥

English Transliteration

nāhaṁ tantuṁ na vi jānāmy otuṁ na yaṁ vayanti samare tamānāḥ | kasya svit putra iha vaktvāni paro vadāty avareṇa pitrā ||

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Pad Path

न। अ॒हम्। तन्तु॑म्। न। वि। जा॒ना॒मि॒। ओतु॑म्। न। यम्। वय॑न्ति। स॒म्ऽअ॒रे। अत॑मानाः। कस्य॑। स्वि॒त्। पु॒त्रः। इ॒ह। वक्त्वा॑नि। प॒रः। व॒दा॒ति॒। अव॑रेण। पि॒त्रा ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:9» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अपत्य किसका होता है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् जनो ! (यम्) जिसको (समरे) संग्राम में (अतमानाः) घूमते हुए जन (न) जैसे वैसे (वयन्ति) व्याप्त होते हैं, यह (इह) यहाँ (कस्य) किसका (स्वित्) भी (पुत्रः) पवित्र और सुख देनेवाला है (परः) अन्य (अवरेण) द्वितीय (पित्रा) पालक वा आचार्य के साथ (वक्त्वानि) कहने के योग्यों को (वदाति) कहे और जिसको घूमते हुए जन सङ्ग्राम में (न) नहीं व्याप्त होते हैं, उस (तन्तुम्) विस्तार को (ओतुम्) रचने को (अहम्) मैं (न) नहीं (वि) विशेष करके (जानामि) जानता हूँ ॥२॥
Connotation: - विद्वानों का यह सिद्धान्त है कि जो दो से उत्पन्न होता है, जिसके दो माता और दो पिता हैं, वह किसका पुत्र है, यह हम लोग नहीं जानते हैं, ऐसा प्रश्न है। इस में सिद्धान्त यह है कि जैसे उत्पन्न करनेवाले माता पिता का पुत्र है, वैसे ही आचार्य और विद्या का भी वह द्विज पुत्र है, ऐसा सब लोग जानो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाऽपत्यं कस्य भवतीत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यं समरेऽतमाना न वयन्ति। अयमिह कस्य स्वित्पुत्रः परोऽवरेण पित्रा सह वक्त्वानि वदाति यमतमानाः समरे न वयन्ति तं तन्तुमोतुं चाहन्न वि जानामि ॥२॥

Word-Meaning: - (न) (अहम्) (तन्तुम्) विस्तारम् (न) इव (वि) (जानामि) (ओतुम्) रचयितुम् (न) (यम्) (वयन्ति) व्याप्नुवन्ति (समरे) सङ्ग्रामे (अतमानाः) अतन्तः। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम् (कस्य) (स्वित्) (पुत्रः) पवित्रः सुखप्रदो वा (इह) (वक्त्वानि) वक्तुं योग्यानि (परः) (वदाति) वदेत् (अवरेण) द्वितीयेन (पित्रा) पालकेनाऽऽचार्य्येण वा ॥२॥
Connotation: - विदुषामयं सिद्धान्तोऽस्ति योऽयं द्वाभ्यां जायते यस्य द्वे मातरौ द्वौ च पितरौ वर्तेते स कस्य पुत्र इति वयं न विजानीमः। अत्रायं सिद्धान्तो यथोत्पादकयोः पुत्रोऽस्ति तथाऽऽचार्यविद्ययोरपि द्विजो वर्त्तत इति सर्वे विजानन्तु ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांचा हा सिद्धांत आहे की, जो दोघांपासून उत्पन्न होतो व ज्याच्या दोन माता व दोन पिता आहेत तो कुणाचा पुत्र असतो, हे आम्ही जाणत नाही. तेव्हा याचा सिद्धांत असा आहे की, उत्पन्न करणाऱ्या माता-पिता यांचा पुत्र तर असतोच; परंतु आचार्य व विद्या यांचाही द्विज पुत्र (दुसऱ्यांदा जन्मलेला) असतो हे सर्वांनी जाणावे. ॥ २ ॥