Go To Mantra

यत्र॑ बा॒णाः सं॒पत॑न्ति कुमा॒रा वि॑शि॒खाइ॑व। तत्रा॑ नो॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॒रदि॑तिः॒ शर्म॑ यच्छतु वि॒श्वाहा॒ शर्म॑ यच्छतु ॥१७॥

English Transliteration

yatra bāṇāḥ sampatanti kumārā viśikhā iva | tatrā no brahmaṇas patir aditiḥ śarma yacchatu viśvāhā śarma yacchatu ||

Mantra Audio
Pad Path

यत्र॑। बा॒णाः। स॒म्ऽपत॑न्ति। कु॒मा॒राः। वि॒शि॒खाःऽइ॑व। तत्र॑। नः॒। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। अदि॑तिः। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒। वि॒श्वाहा॑। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒ ॥१७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:75» Mantra:17 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:17


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् (यत्र) जिस सङ्ग्राम में (कुमाराः) कुमार अर्थात् जिनका मुण्डन हो गया है उन (विशिखाइव) विना चोटीवालों के समान (बाणाः) बाण (सम्पतन्ति) अच्छे प्रकार गिरते हैं (तत्रा) वहाँ (नः) हमारे लिये जैसे (ब्रह्मणः) धन के (पतिः) पालक धनकोश का ईश (विश्वाहा) सब दिनों (शर्म) सुख (यच्छतु) देवे और (अदितिः) भूमि (शर्म) सुख (यच्छतु) देवे, वैसे विधान करो ॥१७॥
Connotation: - हे राजन् ! जब सङ्ग्राम के लिये सेना जावे, तब किसी पदार्थ के विना किसी भृत्य को क्लेश न हो, वैसा अनुष्ठान कीजिये, ऐसे किये पीछे आपका ध्रुव विजय हो ॥१७॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यत्र सङ्ग्रामे कुमारा विशिखाइव बाणाः सम्पतन्ति तत्रा नो यथा ब्रह्मणस्पतिर्विश्वाहा शर्म यच्छत्वदितिः शर्म यच्छतु तथा विधेहि ॥१७॥

Word-Meaning: - (यत्र) यस्मिन् (बाणाः) (सम्पतन्ति) (कुमाराः) कृतचूडाकर्माणः (विशिखाइव) शिखारहिता इव (तत्रा) तस्मिन् सङ्ग्रामे। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (नः) अस्मभ्यम् (ब्रह्मणः) धनस्य (पतिः) पालको धनकोशेशः (अदितिः) भूमिः (शर्म) सुखम् (यच्छतु) ददातु (विश्वाहा) सर्वाणि दिनानि (शर्म) सुखम् (यच्छतु) ददातु ॥१७॥
Connotation: - हे राजन् ! यदा सङ्ग्रामाय सेना गच्छेत्तदा केनापि पदार्थेन विना कस्याऽपि भृत्यस्य क्लेशो न स्यात्तथाऽनुतिष्ठतु। एवं कृते सति भवतो ध्रुवो विजयः स्यात् ॥१७॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे राजा ! जेव्हा लढाईसाठी सेना निघते तेव्हा सेवकांना कोणत्याही पदार्थांची टंचाई भासता कामा नये, अशी व्यवस्था कर. असे केल्याने निश्चित तुझा विजय होईल. ॥ १७ ॥