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सोमा॑रुद्रा धा॒रये॑थामसु॒र्यं१॒॑ प्र वा॑मि॒ष्टयोऽर॑मश्नुवन्तु। दमे॑दमे स॒प्त रत्ना॒ दधा॑ना॒ शं नो॑ भूतं द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥१॥

English Transliteration

somārudrā dhārayethām asuryam pra vām iṣṭayo ram aśnuvantu | dame-dame sapta ratnā dadhānā śaṁ no bhūtaṁ dvipade śaṁ catuṣpade ||

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Pad Path

सोमा॑रुद्रा। धा॒रये॑थाम्। असु॒र्य॑म्। प्र। वा॒म् इ॒ष्टयः॑। अर॑म्। अ॒श्नु॒व॒न्तु॒। दमे॑ऽदमे। स॒प्त। रत्ना॑। दधा॑ना। शम्। नः॒। भू॒त॒म्। द्वि॒ऽपदे॑। शम्। चतुः॑ऽपदे ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:74» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब चार ऋचावाले चौहत्तरवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा और वैद्य कैसे श्रेष्ठ हों, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सोमारुद्रा) चन्द्रमा और प्राण के तुल्य राजा और वैद्यजनो ! तुम दोनों (असुर्यम्) मेघ के इस कर्म को (धारयेथाम्) धारण करो जिससे (वाम्) तुम को (इष्टयः) इच्छाओं की प्राप्तियाँ (अरम्) पूरी (प्र, अश्नुवन्तु) मिलें तथा (दमेदमे) घर-घर में (सप्त) सात (रत्ना) रमणीय हीरा आदि को (दधाना) धारण किये हुए (नः) हमारे (द्विपदे) दो पगवाले मनुष्य आदि के लिये (शम्) सुख करनेवाले (भूतम्) होओ और (चतुष्पदे) गौ आदि चौपाये जीवों के लिये (शम्) सुख करनेवाले होओ ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो राजा चन्द्रमा के तुल्य और जो वैद्य प्राण के तुल्य सब को निर्भय और नीरोग करें, वे सब सुखों को प्राप्त होते हैं, जो प्रजा के घर-घर में धन और आरोग्य को बढ़ावें, वे द्विपगवालों और चार पगवालों से बहुत सुखों को प्राप्त होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजा वैद्यश्च कीदृशौ वरौ स्यातामित्याह ॥

Anvay:

हे राजवैद्यौ सोमारुद्रेव ! युवामसुर्यं धारयेथां यतो वामिष्टयोऽरं प्राश्नुवन्तु दमेदमे सप्त रत्ना दधाना सन्तौ नो द्विपदे शं भूतं चतुष्पदे शं भूतम् ॥१॥

Word-Meaning: - (सोमारुद्रा) चन्द्रप्राणाविव राजवैद्यौ (धारयेथाम्) (असुर्यम्) असुरस्य मेघस्येदम् (प्र) (वाम्) युवाम् (इष्टयः) इष्टप्राप्तयः (अरम्) अलम् (अश्नुवन्तु) प्राप्नुवन्तु (दमेदमे) गृहेगृहे (सप्त) एतत्सङ्ख्याकानि (रत्ना) रमणीयानि हीरकादीनि (दधाना) धरन्तौ (शम्) सुखकारिणौ (नः) अस्माकम् (भूतम्) भवेतम् (द्विपदे) मनुष्याद्याय (शम्) सुखकर्तारौ (चतुष्पदे) गवाद्याय ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यो राजा चन्द्रवद्यश्च वैद्यः प्राणवत्सर्वान्निर्भयान्नी रोगान् कुर्यातां तौ सर्वाणि सुखानि प्राप्नुतः यौ प्रजाया गृहे गृहे धनमारोग्यं च वर्धयतस्तौ द्विपद्भिश्चतुष्पद्भिश्च बहूनि सुखानि प्राप्नुतः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात औषधी व प्राणाप्रमाणे वैद्य व राजाच्या कामाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो राजा चंद्राप्रमाणे व जो वैद्य प्राणाप्रमाणे सर्वांना निर्भय व निरोगी करतो तेव्हा सर्वांना सुख मिळते. जे लोकांच्या घराघरात धन व आरोग्य वाढवितात ते द्विपाद व चतुष्पाद यांच्याकडून खूप सुख प्राप्त करून घेतात. ॥ १ ॥