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वपु॒र्नु तच्चि॑कि॒तुषे॑ चिदस्तु समा॒नं नाम॑ धे॒नु पत्य॑मानम्। मर्ते॑ष्व॒न्यद्दो॒हसे॑ पी॒पाय॑ स॒कृच्छु॒क्रं दु॑दुहे॒ पृश्नि॒रूधः॑ ॥१॥

English Transliteration

vapur nu tac cikituṣe cid astu samānaṁ nāma dhenu patyamānam | marteṣv anyad dohase pīpāya sakṛc chukraṁ duduhe pṛśnir ūdhaḥ ||

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Pad Path

वपुः॑। नु। तत्। चि॒कि॒तुषे॑। चि॒त्। अ॒स्तु॒। स॒मा॒नम्। नाम॑। धे॒नु। पत्य॑मानम्। मर्ते॑षु। अ॒न्यत्। दो॒हसे॑। पी॒पाय॑। स॒कृत्। शु॒क्रम्। दु॒दु॒हे॒। पृश्निः॑। ऊधः॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:66» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:7» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ग्यारह ऋचावाले छियासठवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर वह किसके तुल्य क्या करती है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे पत्नि ! जैसे (ऊधः) रात्रि और (पृश्निः) अन्तरिक्ष (सकृत्) एक वार (शुक्रम्) शीघ्र वीर्य करनेवाले को (दुदुहे) परिपूर्ण करता है, वैसे (धेनु) वाणी के समान तू (मर्त्तेषु) मनुष्यों में (पत्यमानम्) जाते हुए पति को (अन्यत्) और को जैसे वैसे (दोहसे) पूर्ण करने को (पीपाय) बढ़ाओ ऐसी हुई जो तू उसका जो (चित्) निश्चित (समानम्) समान (वपुः) सुन्दररूप और (नाम) नाम है (तत्) वह (चिकितुषे) विज्ञानवान् पति के लिये (नु, अस्तु) शीघ्र हो ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे पुरुष ! जैसे रात्रि और समीप में मायारूपी अन्तरिक्ष वर्षा से होता अर्थात् मेघ से ढपा हुआ अन्तरिक्ष अन्धकारयुक्त होता है, वैसे ही समान गुणकर्मस्वभावयुक्त स्त्री पति के सुख के लिये समर्थ होती है, जैसे गौ बछड़ों को पालती है, वैसे विदुषी माता सन्तानों की यथावत् रक्षा कर सकती है ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सा किंवत्किं करोतीत्याह ॥

Anvay:

हे पत्नि ! यथोधः पृश्निश्च सकृञ्छुक्रं दुदुहे तथा धेन्विव त्वं मर्त्तेषु पत्यमानं पतिमन्यद्दोहसे पीपायैवं भूतायास्तव यच्चित्समानं वपुर्नाम च तच्चिकितुषे पत्ये न्वस्तु ॥१॥

Word-Meaning: - (वपुः) सुरूपं शरीरम् (नु) सद्यः (तत्) (चिकितुषे) विज्ञानवते (चित्) अपि (अस्तु) (समानम्) (नाम) सञ्ज्ञा (धेनु) वाक्। अत्र विभक्तिलोपः। (पत्यमानम्) गम्यमानम् (मर्तेषु) मनुष्येषु (अन्यत्) (दोहसे) दोग्धुम् (पीपाय) आप्यायय (सकृत्) एकवारम् (शुक्रम्) आशुवीर्यकरम् (दुदुहे) पूरयति (पृश्निः) अन्तरिक्षम् (ऊधः) रात्रिः। ऊध इति रात्रिनाम। (निघं०१.७) ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे पुरुष ! यथा रात्रिरारान्मायाऽन्तरिक्षं वर्षाभ्योऽस्ति तथैव समानगुणकर्मस्वभावा पत्नी पत्युः सुखाय कल्पते यथा धेनुर्वत्सान् पालयति तथा विदुषी माता सन्तानान्यथावद्रक्षितुं शक्नोति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात वायूच्या गुणाप्रमाणे विद्वान व वीरांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर पूर्व सूक्तार्थाची संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे पुरुषा ! जसे मेघांनी आच्छादित असलेले अंतरिक्ष अंधकारयुक्त असते, तसे समान गुणकर्म स्वभावयुक्त स्त्री पतीला सुख देण्यास समर्थ असते. जशी गाय वासरांचे पालन करते तशी विदुषी माता संतानांचे यथावत रक्षण करू शकते. ॥ १ ॥