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अव॑न्तु॒ मामु॒षसो॒ जाय॑माना॒ अव॑न्तु मा॒ सिन्ध॑वः॒ पिन्व॑मानाः। अव॑न्तु मा॒ पर्व॑तासो ध्रु॒वासोऽव॑न्तु मा पि॒तरो॑ दे॒वहू॑तौ ॥४॥

English Transliteration

avantu mām uṣaso jāyamānā avantu mā sindhavaḥ pinvamānāḥ | avantu mā parvatāso dhruvāso vantu mā pitaro devahūtau ||

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Pad Path

अव॑न्तु। माम्। उ॒षसः॑। जाय॑मानाः। अव॑न्तु। मा॒। सिन्ध॑वः। पिन्व॑मानाः। अव॑न्तु। मा॒। पर्व॑तासः। ध्रु॒वासः। अव॑न्तु। मा॒। पि॒तरः॑। दे॒वऽहू॑तौ ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:52» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:14» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को कैसा आचरण करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे उपदेश करनेवालो ! तुम (देवहूतौ) दिव्यगुण वा विद्वानों के संग्र­ह में जैसे (जायमानाः) उत्पद्यमान (उषसः) प्रभातवेलाएँ (माम्) मेरी (अवन्तु) रक्षा करें तथा (पिन्वमानाः) सेवन करती हुई (सिन्धवः) नदियाँ (मा) मेरी (अवन्तु) रक्षा करें और (ध्रुवासः) निश्चल (पर्वतासः) शैल पहाड़ (मा) मेरी (अवन्तु) रक्षा करें और (पितरः) पिता वा पढ़ानेवाला वा ऋतु वसन्त आदि (मा) मेरी (अवन्तु) रक्षा करें, वैसी शिक्षा करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम इस प्रकार युक्त आहार-विहार करो, जिससे सब सृष्टिस्थ पदार्थ दुःख देनेवाले न हों और शुभ गुणों को तुम लोग प्राप्त होओ ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः कथमाचरणीयमित्याह ॥

Anvay:

हे उपदेष्टारो ! यूयं देवहूतौ यथा जायमाना उषसो मामवन्तु पिन्वमानाः सिन्धवो माऽवन्तु ध्रुवासः पर्वतासो माऽवन्तु पितरो माऽवन्तु तथा शिक्षत ॥४॥

Word-Meaning: - (अवन्तु) रक्षन्तु (माम्) (उषसः) प्रभातवेलाः (जायमानाः) उत्पद्यमानाः (भवन्तु) (मा) माम् (सिन्धवः) नद्यः (पिन्वमानाः) सिञ्चन्त्यः (अवन्तु) (मा) माम् (पर्वतासः) शैलाः (ध्रुवासः) निश्चलाः (अवन्तु) (मा) माम् (पितरः) जनका अध्यापका ऋतवो वा (देवहूतौ) दिव्यगुणानां विदुषां वा संग्र­हणे ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यूयमेवं युक्ताहारविहारं कुर्यात येन सर्वे सृष्टिस्थाः पदार्था दुःखप्रदा न स्युः शुभान् गुणांश्च यूयं प्राप्नुत ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही या प्रकारचा आहार-विहार करा ज्यामुळे जगातील पदार्थ दुःख देणार नाहीत. तुम्ही शुभ गुणांना प्राप्त करा. ॥ ४ ॥