Go To Mantra

अति॑ वा॒ यो म॑रुतो॒ मन्य॑ते नो॒ ब्रह्म॑ वा॒ यः क्रि॒यमा॑णं॒ निनि॑त्सात्। तपूं॑षि॒ तस्मै॑ वृजि॒नानि॑ सन्तु ब्रह्म॒द्विष॑म॒भि तं शो॑चतु॒ द्यौः ॥२॥

English Transliteration

ati vā yo maruto manyate no brahma vā yaḥ kriyamāṇaṁ ninitsāt | tapūṁṣi tasmai vṛjināni santu brahmadviṣam abhi taṁ śocatu dyauḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

अति॑। वा॒। यः। म॒रु॒तः॒। मन्य॑ते। नः॒। ब्रह्म॑। वा॒। यः। क्रि॒यमा॑णम्। निनि॑त्सात्। तपूं॑षि। तस्मै॑। वृ॒जि॒नानि॑। स॒न्तु॒। ब्र॒ह्म॒ऽद्विष॑म्। अ॒भि। तम्। शो॒च॒तु॒। द्यौः ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:52» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:2


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन मनुष्य निन्दा करने और वर्जने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मरुतः) मनुष्यो ! (यः) जो (नः) हम लोगों को (अति, मन्यते) अत्यन्त मानता है (वा) वा (यः) जो (क्रियमाणम्) क्रियमाण (ब्रह्म) धन को अत्यन्त मानता है (वा) वा (निनित्सात्) निन्दा करने को चाहे (तम्) उस (ब्रह्मद्विषम्) धनके द्वेषीजन को (द्यौः) कामना करता हुआ विद्वान् (अभि, शोचतु) सब ओर से शोचे (तस्मै) इसके लिये (तपूंषि) तेजोमय व्यवहार (वृजिनानि) बाधक (सन्तु) हों ॥२॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जो मनुष्य अतिमान, धनादिकों से द्वेष और अच्छे सज्जनों की निन्दा करते हैं, वे दण्ड देने, निन्दा करने और शोक करने योग्य होते हैं ॥२॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के मनुष्या निन्द्या वर्ज्जनीयाश्च सन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे मरुतो ! यो नोऽस्मानति मन्यते वा यः क्रियमाणं ब्रह्माऽति मन्यते वा निनित्सात् तं ब्रह्मद्विषं द्यौरभि शोचतु तस्मै तपूंषि वृजिनानि सन्तु ॥२॥

Word-Meaning: - (अति) (वा) (यः) (मरुतः) मनुष्याः (मन्यते) (नः) अस्मान् (ब्रह्म) धनम् (वा) (यः) (क्रियमाणम्) (निनित्सात्) निन्दितुमिच्छेत् (तपूंषि) तेजोमयानि (तस्मै) (वृजिनानि) बाधकानि (सन्तु) (ब्रह्मद्विषम्) धनस्य द्वेष्टारम् (अभि) (तम्) (शोचतु) (द्यौः) कामयमानो विद्वान् ॥२॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! ये मनुष्या अतिमानं धनादिद्वेषमाप्तनिन्दाञ्च कुर्वन्ति ते दण्डनीया निन्दनीयाः शोचनीयाश्च सन्ति ॥२॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे विद्वानांनो! जी माणसे अति अभिमान धन इत्यादीचा द्वेष व चांगल्या लोकांची निंदा करतात ती दंड देण्यायोग्य, निंदा करण्यायोग्य व शोचनीय असतात. ॥ २ ॥