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अग्नी॑पर्जन्या॒वव॑तं॒ धियं॑ मे॒ऽस्मिन्हवे॑ सुहवा सुष्टु॒तिं नः॑। इळा॑म॒न्यो ज॒नय॒द्गर्भ॑म॒न्यः प्र॒जाव॑ती॒रिष॒ आ ध॑त्तम॒स्मे ॥१६॥

English Transliteration

agnīparjanyāv avataṁ dhiyam me smin have suhavā suṣṭutiṁ naḥ | iḻām anyo janayad garbham anyaḥ prajāvatīr iṣa ā dhattam asme ||

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Pad Path

अग्नी॑पर्जन्यौ। अव॑तम्। धिय॑म्। मे॒। अ॒स्मिन्। हवे॑। सु॒ऽह॒वा॒। सु॒ऽस्तु॒तिम्। नः॒। इळा॑म्। अ॒न्यः। ज॒नय॑त्। गर्भ॑म्। अ॒न्यः। प्र॒जाऽव॑तीः। इषः॑। आ। ध॒त्त॒म्। अ॒स्मे इति॑ ॥१६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:52» Mantra:16 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:16» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे विद्वान् कैसे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सुहवा) सुन्दर प्रशंसित अध्यापक और उपदेशको ! तुम (अग्नीपर्जन्यौ) बिजुलीरूप अग्नि और मेघ के तुल्य (अस्मिन्) इस (हवे) प्रशंसनीय धर्मयुक्त व्यवहार में तुम दोनों (मे) मेरी (धियम्) बुद्धि की (अवतम्) रक्षा करो तथा (नः) हमारी (सुष्टुतिम्) शोभन प्रशंसा की रक्षा करो जैसे अग्नि और मेघ के बीच (अन्यः) और बिजुलीमय अग्नि (इळाम्) महान् वाणी को (अन्यः) और मेघ (गर्भम्) गर्भरूप (जनयत्) उत्पन्न करता है, वैसे (अस्मे) हमारी (प्रजावतीः) बहुप्रशंसित प्रजायुक्त (इषः) अन्नादि पदार्थों की इच्छाओं को (आ, धत्तम्) सब ओर से धारण करो ॥१६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो वह्नि और मेघ के समान सब की बुद्धि के बढ़ानेवाले वा रक्षा करनेवाले, सब प्रजाजनों को सुख में धारण करते हैं, वे जैसे मेघ पृथिवी पर गर्भ को धारण कर ओषधियों को उत्पन्न करता और जैसे अग्नि वाणी का विधान करता अर्थात् बिजुलीरूप होकर तड़कता है, वैसे वे सुखों का विधान करनेवाले होते हैं, यह आप जानो ॥१६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते विद्वांसः कथं किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे सुहवाऽग्नीपर्जन्याविवाऽस्मिन् हवे युवाम्मे धियमवतं नः सुष्टुतिमवतं यथाऽऽग्नीपर्जन्ययोर्मध्येऽन्योऽग्निरिळामन्यो मेघो गर्भं जनयत्तथाऽस्मे प्रजावतीरिष आ धत्तम् ॥१६॥

Word-Meaning: - (अग्निपर्जन्यौ) विद्युन्मेघाविव (अवतम्) रक्षतम् (धियम्) प्रज्ञाम् (मे) मम (अस्मिन्) (हवे) प्रशंसनीये धर्म्ये व्यवहारे (सुहवा) सुष्ठुप्रशंसितावध्यापकोपदेशकौ (सुष्टुतिम्) शोभनां प्रशंसाम् (नः) अस्माकम् (इळाम्) महतीं वाचम् (अन्यः) विद्युन्मयोऽग्निः (जनयत्) जनयति (गर्भम्) (अन्यः) मेघः (प्रजावतीः) बहुप्रशंसितप्रजायुक्ताः (इषः) अन्नादीच्छाः (आ) (धत्तम्) (अस्मे) अस्माकम् ॥१६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! ये वह्निमेघवत्सर्वेषां बुद्धिवर्धका रक्षकाः सर्वाः प्रजाः सुखे धरन्ति ते यथा मेघः पृथिव्यां गर्भं धृत्वौषधीर्जनयति यथा चाऽग्निर्वाचं विदधाति तथा ते सुखविधायका भवन्तीति भवन्तो विजानीयुः ॥१६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे अग्नी व मेघाप्रमाणे सर्वांची बुद्धी वाढविणारे किंवा रक्षण करणारे असून सर्व प्रजाजनांना सुखी करतात. जसा अग्नी वाणी उत्पन्न करतो तसे ते सुखदायक असतात, हे तुम्ही जाणा. ॥ १६ ॥