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स्तो॒त्रमिन्द्रो॑ म॒रुद्ग॑ण॒स्त्वष्टृ॑मान्मि॒त्रो अ॑र्य॒मा। इ॒मा ह॒व्या जु॑षन्त नः ॥११॥

English Transliteration

stotram indro marudgaṇas tvaṣṭṛmān mitro aryamā | imā havyā juṣanta naḥ ||

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Pad Path

स्तो॒त्रम्। इन्द्रः॑। म॒रुत्ऽग॑णः। त्वष्टृ॑ऽमान्। मि॒त्रः। अ॒र्य॒मा। इ॒मा। ह॒व्या। जु॒ष॒न्त॒। नः॒ ॥११॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:52» Mantra:11 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:16» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किसके साथ क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! आप जो (मरुद्गणः) जिसके उत्तम मनुष्यों का समूह और (त्वष्टृमान्) उत्तम शिल्पीजन विद्यमान हैं तथा (मित्रः) जो कि सबका मित्र (अर्यमा) न्याय करनेवाला और (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा हो उसके साथ (नः) हमारे (स्तोत्रम्) उस स्तोत्र को जिससे स्तुति करते हो और (इमा) इन (हव्या) लेने-देने योग्य अन्नादि पदार्थों को (जुषन्त) सेवो ॥११॥
Connotation: - वे ही मनुष्य चाहे हुए पदार्थों को पा सकते हैं, जो सब के लिये श्रेष्ठ पुरुष को अधिष्ठाता करते हैं ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः केन सह किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! भवन्तो यो मरुद्गणस्त्वष्टृमान् मित्रोऽर्यमेन्द्रो भवेत्तेन सह न स्तोत्रमिमा हव्या च जुषन्त ॥११॥

Word-Meaning: - (स्तोत्रम्) स्तुवन्ति येन तत् (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् राजा (मरुद्गणः) मरुतामुत्तमानां मनुष्याणां गणः समूहो यस्य (त्वष्टृमान्) त्वष्टार उत्तमाः शिल्पिनो विद्यन्ते यस्य सः (मित्रः) सर्वस्य सुहृत् (अर्यमा) न्यायकारी (इमा) इमानि (हव्या) दातुमादातुमर्हाण्यन्नादीनि (जुषन्त) सेवन्ताम् (नः) अस्माकम् ॥११॥
Connotation: - त एव मनुष्या इष्टानि प्राप्तुं शक्नुवन्ति ये सर्वेभ्यः श्रेष्ठं पुरुषमधिष्ठातारं कुर्वन्ति ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे श्रेष्ठ पुरुषाला अधिष्ठाता बनवितात त्यांनाच इच्छित पदार्थ प्राप्त होऊ शकतात. ॥ ११ ॥