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नू स॒द्मानं॑ दि॒व्यं नंशि॑ देवा॒ भार॑द्वाजः सुम॒तिं या॑ति॒ होता॑। आ॒सा॒नेभि॒र्यज॑मानो मि॒येधै॑र्दे॒वानां॒ जन्म॑ वसू॒युर्व॑वन्द ॥१२॥

English Transliteration

nū sadmānaṁ divyaṁ naṁśi devā bhāradvājaḥ sumatiṁ yāti hotā | āsānebhir yajamāno miyedhair devānāṁ janma vasūyur vavanda ||

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Pad Path

नु। स॒द्मान॑म्। दि॒व्यम्। नंशि॑। दे॒वाः॒। भार॑त्ऽवाजः। सु॒ऽम॒तिम्। या॒ति॒। होता॑। आ॒सा॒नेभिः॑। यज॑मानः। मि॒येधैः॑। दे॒वाना॑म्। जन्म॑। व॒सु॒ऽयुः। व॒व॒न्द॒ ॥१२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:51» Mantra:12 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:13» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन धन्यवाद के योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (देवा) विद्वानो ! जो (भारद्वाजः) विज्ञान को धारण किये (होता) देनेवाला (सुमतिम्) शोभन बुद्धि को (याति) प्राप्त होता है वह (नू) शीघ्र (दिव्यम्) मनोहर (सद्मानम्) जिसमें स्थिर होता उस घर को (नंशि) व्याप्त होता है। जो (वसूयुः) द्रव्यों की कामना करने और (यजमानः) यज्ञ करनेवाला (मियेधैः) प्रेरणा देनेवाले (आसानेभिः) बैठे हुए ऋत्विजों के साथ (देवानाम्) विद्वानों के (जन्म) उत्पन्न होने की (ववन्द) प्रशंसा करता है, उसका तुम सत्कार करो ॥१२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो राजा के विद्या और जन्म की प्रशंसा करते, वे शुद्ध सुख को प्राप्त होते हैं, जैसे बहुत विद्वानों के साथ यज्ञ करनेवाला यज्ञ को सुभूषित कर समस्त जगत् का उपकार करता है, वैसे ही विद्वान् जन पढ़ाने और उपदेशों से सब को प्राज्ञ (उत्तम ज्ञाता) कर प्रशंसा को प्राप्त होते हैं ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के धन्यवादार्हाः सन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे देवा विद्वांसो ! यो भारद्वाजो होता सुमतिं याति स नू दिव्यं सद्मानं नंशि। यो वसूयुर्यजमानो मियेधैरासानेभिस्सह देवानां जन्म ववन्द तं यूयं सत्कुरुत ॥१२॥

Word-Meaning: - (नू) सद्यः। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (सद्मानाम्) यस्मिन् सीदति तम् (दिव्यम्) कमनीयम् (नंशि) व्याप्नोति (देवाः) विद्वांसः (भारद्वाजः) धृतविज्ञानः (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (याति) प्राप्नोति (होता) दाता (आसानेभिः) आसीनैर्ऋत्विग्भिस्सह (यजमानः) यज्ञकर्ता (मियेधैः) प्रेरकैः (देवानाम्) विदुषाम् (जन्म) प्रादुर्भावम् (वसूयुः) वसूनि द्रव्याणि कामयमानः (ववन्द) वन्दति प्रशंसति ॥१२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये राज्ञो विद्याजन्मे प्रशंसन्ति ते शुद्धं सुखमाप्नुवन्ति यथा बहुभिर्विद्वद्भिस्सह यजमानो यज्ञमलङ्कृत्य सर्वं जगदुपकरोति तथैव विद्वांसोऽध्यापनोपदेशाभ्यां सर्वान् प्रज्ञान् कृत्वा प्रशंसां यान्ति ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जे राजाच्या विद्याजन्माची (द्विज) प्रशंसा करतात ते शुद्ध सुख प्राप्त करतात. जसा अनेक विद्वानांबरोबर याज्ञिक यज्ञाला सुशोभित करून संपूर्ण जगावर उपकार करतो तसेच विद्वान लोक अध्यापन व उपदेश याद्वारे सर्वांना विद्वान करून प्रशंसायुक्त बनतात. ॥ १२ ॥