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प्र वा॒युमच्छा॑ बृह॒ती म॑नी॒षा बृ॒हद्र॑यिं वि॒श्ववा॑रं रथ॒प्राम्। द्यु॒तद्या॑मा नि॒युतः॒ पत्य॑मानः क॒विः क॒विमि॑यक्षसि प्रयज्यो ॥४॥

English Transliteration

pra vāyum acchā bṛhatī manīṣā bṛhadrayiṁ viśvavāraṁ rathaprām | dyutadyāmā niyutaḥ patyamānaḥ kaviḥ kavim iyakṣasi prayajyo ||

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Pad Path

प्र। वा॒युम्। अच्छ॑। बृ॒ह॒ती। म॒नी॒षा। बृ॒हत्ऽर॑यिम्। वि॒श्वऽवा॑रम्। र॒थ॒ऽप्राम्। द्यु॒तद्ऽया॑मा। नि॒ऽयुतः॑। पत्य॑मानः। क॒विः। क॒विम्। इ॒य॒क्ष॒सि॒। प्र॒य॒ज्यो॒ इति॑ प्रऽयज्यो ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:49» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (प्रयज्यो) उत्तमता से यज्ञ करनेवाले ! (पत्यमानः) ऐश्वर्य की इच्छा करते हुए (कविः) विद्वान् आप जो (द्युतद्यामा) जिससे विशेषकर पदार्थ प्रकाशित होते हैं ऐसी (बृहती) बड़ी (मनीषा) बुद्धि है उससे जो (बृहद्रयिम्) जिससे बहुत धन सिद्ध होता उस (विश्ववारम्) और जो समस्त उत्तम व्यवहार को स्वीकार करता वा (रथप्राम्) रथ को परिपूर्ण करता वा (कविम्) विद्वान् के समान क्रमपूर्वक बुद्धि प्राप्त होती उस (वायुम्) वायु और इसके (नियुतः) निश्चित गतिवाले वेगरूप घोड़ों को (अच्छा) (प्र, इयक्षसि) मिलते हैं तो कौन-कौन चाहे हुए पदार्थ को नहीं प्राप्त होते हैं ॥४॥
Connotation: - जो मनुष्य शुद्ध बुद्धि और योगाभ्यास से सर्व सुख देने तथा सर्व जगत् के धारण करनेवाले पवन को प्राणायाम में वश करते हैं, वे सर्वसुख को प्राप्त होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे प्रयज्यो ! पत्यमानः कविस्त्वं या द्युतद्यामा बृहती मनीषा तया यदि बृहद्रयिं विश्ववारं रथप्रां कविं वायुमस्य नियुतश्चाच्छा प्रेयक्षसि तर्हि किं किमभीष्टं न प्राप्नोषि ॥४॥

Word-Meaning: - (प्र) प्रकर्षेण (वायुम्) पवनम् (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (बृहती) महती (मनीषा) प्रज्ञा (बृहद्रयिम्) महान्रयिर्यस्मात्तम् (विश्ववारम्) यो विश्वं सर्वमुत्तमं व्यवहारं वृणोति तम् (रथप्राम्) यो रथानि यानानि पूर्यते तम् (द्युतद्यामा) द्युतन्तो विद्योतमाना पदार्था यया सा (नियुतः) निश्चितगतिमतः (पत्यमानः) ऐश्वर्यमिच्छन् (कविः) विद्वान् (कविम्) विद्वांसमिव क्रान्तप्रज्ञम् (इयक्षसि) सङ्गच्छसे प्राप्नोषि वा। इयक्षतीति गतिकर्म्मा। (निघं०२.१४) (प्रयज्यो) यः प्रकर्षेण यजति तत्सम्बुद्धौ ॥४॥
Connotation: - ये मनुष्याः शुद्धया बुद्ध्या योगाभ्यासेन च सर्वसुखप्रदं सर्वजगद्धरं वायुं प्राणायामे वशीकुर्वन्ति ते सर्वाणि सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -जी माणसे शुद्ध बुद्धी व योगाभ्यास याद्वारे सुख देणाऱ्या व जगाचे धारण करणाऱ्या वायूला प्राणायामाने वश करतात ती सर्व सुख प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥