स॒कृद्ध॒ द्यौर॑जायत स॒कृद्भूमि॑रजायत। पृश्न्या॑ दु॒ग्धं स॒कृत्पय॒स्तद॒न्यो नानु॑ जायते ॥२२॥
sakṛd dha dyaur ajāyata sakṛd bhūmir ajāyata | pṛśnyā dugdhaṁ sakṛt payas tad anyo nānu jāyate ||
स॒कृत्। ह॒। द्यौः। अ॒जा॒य॒त॒। स॒कृत्। भूमिः॑। अ॒जा॒य॒त॒। पृश्न्याः॑। दु॒ग्धम्। स॒कृत्। पयः॑। तत्। अ॒न्यः। न। अनु॑। जा॒य॒ते॒ ॥२२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब प्रजा के कृत्य को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ प्रजाकृत्यमाह ॥
हे मनुष्या ! यथा ह द्यौः सकृदजायत भूमिः सकृदजायत पृश्न्याः सकृज्जायन्ते दुग्धं पयश्च सकृज्जायते तदन्यो नानु जायते तथैव यूयं विजानीत ॥२२॥
MATA SAVITA JOSHI
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