तं व॒ इन्द्रं॒ न सु॒क्रतुं॒ वरु॑णमिव मा॒यिन॑म्। अ॒र्य॒मणं॒ न म॒न्द्रं सृ॒प्रभो॑जसं॒ विष्णुं॒ न स्तु॑ष आ॒दिशे॑ ॥१४॥
taṁ va indraṁ na sukratuṁ varuṇam iva māyinam | aryamaṇaṁ na mandraṁ sṛprabhojasaṁ viṣṇuṁ na stuṣa ādiśe ||
तम्। वः॒। इन्द्र॑म्। न। सु॒ऽक्रतु॑म्। वरु॑णम्ऽइव। मा॒यिन॑म्। अ॒र्य॒मण॑म्। न। म॒न्द्रम्। सृ॒प्रऽभो॑जसम्। विष्णु॑म्। न। स्तु॒षे॒। आ॒ऽदिशे॑ ॥१४॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्य किसकी प्रशंसा करें, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्याः कं प्रशंसेयुरित्याह ॥
हे विद्वंस्त्वं यमिममिन्द्रं न सुक्रतुं वरुणमिव मायिनमर्यमणं न मन्द्रं विष्णुं सृप्रभोजसं स्तुषे तं व आदिशेऽहं प्रशंसामि ॥१४॥
MATA SAVITA JOSHI
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