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तं व॒ इन्द्रं॒ न सु॒क्रतुं॒ वरु॑णमिव मा॒यिन॑म्। अ॒र्य॒मणं॒ न म॒न्द्रं सृ॒प्रभो॑जसं॒ विष्णुं॒ न स्तु॑ष आ॒दिशे॑ ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ va indraṁ na sukratuṁ varuṇam iva māyinam | aryamaṇaṁ na mandraṁ sṛprabhojasaṁ viṣṇuṁ na stuṣa ādiśe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। वः॒। इन्द्र॑म्। न। सु॒ऽक्रतु॑म्। वरु॑णम्ऽइव। मा॒यिन॑म्। अ॒र्य॒मण॑म्। न। म॒न्द्रम्। सृ॒प्रऽभो॑जसम्। विष्णु॑म्। न। स्तु॒षे॒। आ॒ऽदिशे॑ ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:48» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य किसकी प्रशंसा करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! आप जिस इस (इन्द्रम्) बिजुली के समान तीव्रबुद्धि के (न) समान (सुक्रतुम्) उत्तम बुद्धिवाले (वरुणस्य) वरुण के समान (मायिनम्) कुत्सित बुद्धिवाले वा (अर्यमणम्) न्यायाधिपति के (न) समान (मन्द्रम्) आनन्द देनेवाले (विष्णुम्) व्यापक जगदीश्वर के (न) समान (सृप्रभोजसम्) प्राप्त हुए पदार्थों के पालने की (स्तुषे) प्रशंसा करते हैं (तम्) उसको (वः) तुम लोगों के लिये (आदिशे) आज्ञा पालन के अर्थ मैं उसकी प्रशंसा करता हूँ ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य सूर्य्य के समान विद्याप्रकाशक, व्याध के समान दुष्टों के मारनेवाले, आप्त विद्वान् के समान न्याय के करनेवाले, ईश्वर के समान सर्व के पालनेवाले, सत्य के उपदेश करनेवाले तथा धर्म करनेवाले मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, वे ही इस संसार में परीक्षा करनेवाले होते हैं ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कं प्रशंसेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वंस्त्वं यमिममिन्द्रं न सुक्रतुं वरुणमिव मायिनमर्यमणं न मन्द्रं विष्णुं सृप्रभोजसं स्तुषे तं व आदिशेऽहं प्रशंसामि ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) विद्वांसम् (वः) युष्मदर्थम् (इन्द्रम्) विद्युद्वत्तीव्रबुद्धिम् (न) इव (सुक्रतुम्) उत्तमप्रज्ञम् (वरुणमिव) पाशैर्बन्धकं व्याधमिव (मायिनम्) कुत्सितप्रज्ञम् (अर्यमणम्) न्यायेशम् (न) इव (मन्द्रम्) आनन्दप्रदम् (सृप्रभोजसम्) प्राप्तानां पालकं (विष्णुम्) व्यापकं जगदीश्वरम् (न) इव (स्तुषे) प्रशंससि (आदिशे) आज्ञापालनाय ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः सूर्यवद्विद्याप्रकाशकं व्याधवद् दुष्टहिंसकमाप्तवन्न्यायकारिणमीश्वरवत्सर्वपालकं सत्योपदेष्टारं धर्मकारिणं नरं प्रशंसन्ति त एवाऽत्र परीक्षकाः सन्ति ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे सूर्याप्रमाणे विद्येचा प्रकाश करणारी, व्याधाप्रमाणे दुष्टांना मारणारी, विद्वानांप्रमाणे न्याय करणारी, ईश्वराप्रमाणे सर्वांचे पालन करणारी, सत्याचा उपदेश करणारी, तसेच धार्मिक माणसांची प्रशंसा करणारी असतात तीच या जगात परीक्षा करणारी असतात. ॥ १४ ॥