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ब्र॒ह्माणं॒ ब्रह्म॑वाहसं गी॒र्भिः सखा॑यमृ॒ग्मिय॑म्। गां न दो॒हसे॑ हुवे ॥७॥

English Transliteration

brahmāṇam brahmavāhasaṁ gīrbhiḥ sakhāyam ṛgmiyam | gāṁ na dohase huve ||

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Pad Path

ब्र॒ह्माण॑म्। ब्रह्म॑ऽवाहसम्। गीः॒ऽभिः। सखा॑यम्। ऋ॒ग्मिय॑म्। गाम्। न। दो॒हसे॑। हु॒वे॒ ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:45» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जैसे मैं (गीर्भिः) सुशिक्षायुक्त, मधुर, सत्यवाणियों से (दोहसे) दोहने पूरण करने को (गाम्) गौ के (न) समान (सखायम्) सब के मित्र (ऋग्मियम्) स्तुतियों से स्तुति करने योग्य (ब्रह्मवाहसम्) वेदों के शब्दार्थ सम्बन्ध और स्वरों के करानेवाले (ब्रह्माणम्) चतुर्वेदवेत्ता विद्वान् को (हुवे) बुलाता और उसकी प्रशंसा करता हूँ, वैसे इसको आप बुला और उसकी प्रशंसा करो ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् जन वेदपारगन्ता, आप्त, विद्वान् का आश्रय लेकर सभ्य विपश्चित् होते हैं, वैसे इनके सङ्ग से तुम भी विद्वान् वा चतुर होओ ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यथाहं गीर्भिर्दोहसे गां न सखायमृग्मियं ब्रह्मवाहसं ब्रह्माणं हुवे तथैनं भवानाह्वयतु ॥७॥

Word-Meaning: - (ब्रह्माणम्) चतुर्वेदविदम् (ब्रह्मवाहसम्) वेदानां शब्दार्थसम्बन्धस्वराणां प्रापकम् (गीर्भिः) सुशिक्षिताभिर्मधुराभिः सत्याभिर्वाग्भिः (सखायम्) सर्वेषां मित्रम् (ऋग्मियम्) स्तुतिभिः स्तवनीयम् (गाम्) दुग्धदात्रीं धेनुम् (न) इव (दोहसे) दोग्धुम् (हुवे) आह्वयामि प्रशंसामि च ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा विद्वांसो वेदपारमाप्तं विद्वांसमाश्रित्य सभ्या विपश्चितो जायन्ते तथैतेषां सङ्गेन यूयमपि विद्वांसश्चतुरा वा भवत ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे विद्वान लोक वेदपारंगत, विद्वानांचा आश्रय घेऊन सभ्य विद्वान होतात तसे त्यांच्या संगतीने तुम्हीही विद्वान किंवा चतुर व्हा. ॥ ७ ॥