ब्र॒ह्माणं॒ ब्रह्म॑वाहसं गी॒र्भिः सखा॑यमृ॒ग्मिय॑म्। गां न दो॒हसे॑ हुवे ॥७॥
brahmāṇam brahmavāhasaṁ gīrbhiḥ sakhāyam ṛgmiyam | gāṁ na dohase huve ||
ब्र॒ह्माण॑म्। ब्रह्म॑ऽवाहसम्। गीः॒ऽभिः। सखा॑यम्। ऋ॒ग्मिय॑म्। गाम्। न। दो॒हसे॑। हु॒वे॒ ॥७॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे राजन् ! यथाहं गीर्भिर्दोहसे गां न सखायमृग्मियं ब्रह्मवाहसं ब्रह्माणं हुवे तथैनं भवानाह्वयतु ॥७॥