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यो गृ॑ण॒तामिदासि॑था॒पिरू॒ती शि॒वः सखा॑। स त्वं न॑ इन्द्र मृळय ॥१७॥

English Transliteration

yo gṛṇatām id āsithāpir ūtī śivaḥ sakhā | sa tvaṁ na indra mṛḻaya ||

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Pad Path

यः। गृ॒ण॒ताम्। इत्। आसि॑थ। आ॒पिः। ऊ॒ती। शि॒वः। सखा॑। सः। त्वम्। नः॒। इ॒न्द्र॒। मृ॒ळ॒य॒ ॥१७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:45» Mantra:17 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:24» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) दुःखों के नाश करनेवाले राजन् ! (यः) जो (गृणताम्) प्रशंसा करनेवाले (नः) हम लोगों के (आपिः) श्रेष्ठ गुणों से व्यापक (शिवः) मङ्गलकारी (सखा) मित्र (आसिथ) होते हो (सः इत्) वही (त्वम्) आप (ऊती) रक्षण आदि क्रिया से हम लोगों को (मृळय) सुखी करो ॥१७॥
Connotation: - हे राजन् ! जो आप शत्रुरहित और संसार के मित्र, सब के मङ्गल करनेवाले प्रजाओं में हूजिये तो शीघ्र धर्म्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध करिये ॥१७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा कीदृग्भवेदित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र राजन् ! यो गृणतां न आपिश्शिवः सखाऽऽसिथ स इत्त्वमूती नो मृळय ॥१७॥

Word-Meaning: - (यः) (गृणताम्) प्रशंसकानाम् (इत्) एव (आसिथ) भवसि (आपिः) शुभगुणव्यापकः (ऊती) ऊत्या रक्षणादिक्रियया (शिवः) मङ्गलकारी (सखा) सुहृद् (सः) (त्वम्) (नः) अस्मानस्माकं वा (इन्द्र) दुःखविदारक (मृळय) सुखय ॥१७॥
Connotation: - हे राजन् ! यदि त्वमजातशत्रुर्विश्वमित्रः सर्वस्य मङ्गलकारी प्रजासु भवेस्तर्हि सद्यो धर्मार्थकाममोक्षान् साध्नुयाः ॥१७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! तू अजातशत्रू, विश्वाचा मित्र व प्रजेचे मंगल करणारा हो आणि तत्काळ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सिद्ध कर. ॥ १७ ॥